Book Title: Agam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Sthanakvasi
Author(s): Amolakrushi Maharaj
Publisher: Raja Bahaddurlal Sukhdevsahayji Jwalaprasadji Johari
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एवं जाव फासिदियप्पयार गिरोहोवा, फासिंदिप विसथप्पत्तसुवा अस्थेसुः रागदौसः विणिग्गहो; सेत्तं इंदियपडिसंलीणया ॥ से किंतं कसायपडिसलीणया ? कसाय पडिसंलीणया चउन्विहा पण्णत्ता तंजहा कोहोदयगिरोहीवा उदयप्पत्तरसवा कोहस्स
१/२८८५ विफली करणं, एवं जाब लोभोवय गिरोहोवा उदयप्पत्तस्स लोभस्स बिफलीकरणं, सेतं कसायपडिसंलीणया से किंतं जोगडिसंलोणया ? जोगपडिसंलीणया तिविहा पण्णात्ता तंजहा अकुसल मणणिरोहोवा, कुसलमण उदीरणया.
मणस्स एगत्तीभावकरणं ॥ से किंतं पइपडिसलीणया ? घइपडिसंलीणया तिधिहा हो तो रागद्वेष रहित प्रण करना, यों चाइन्द्रिय विषय यावत् स्पोन्द्रिय विषय का कहना. यह न्द्रिा प्रतिसंलीनता. कपाय पते संलीनता किसे कहते हैं ? कषाय प्रतिसलीनता के चार भेद क्रोध का उदय नहीं होने देना, कदाचित् उद्य. हे मात्र तो विफल करना. यों यावत् लोभ का उदय नहीं हाने देना. कदाचित् होजावे तो उसको विफल करना. यह कषाय प्रतिसंलीनता. योग प्रति संलीनता के कितने भेद कहे हैं ? योग प्रतिसंलीनता के तीन भेद कहे हैं. अकुशल मन का निरोध और कुराल मन की उदीरणा और मन का एकत्व भाव करना. वचन प्रतिमली ता किसे कहते हैं ! वचन प्रति।।
पंचांग विवाह ष्णात ..
30- पच्चीसना शतक का सातवा उद्देशा
भावार्थ
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