Book Title: Agam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Sthanakvasi
Author(s): Amolakrushi Maharaj
Publisher: Raja Bahaddurlal Sukhdevsahayji Jwalaprasadji Johari
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अकिरिए,णिरुवक्कमे, अणण्हयकरें, अच्छविकरे, अभूयाभिसंकणे; सेत्तंपसत्थमणविणए । से किंतं अप्पसत्यमणविणए? अप्पसत्थमणविणए सत्तविहे प०तं. पावए सावजेसकिरिए सउवक्कोसे,अण्णयकरे, छविकरे, भूताभिसंकणे, सेत्तं अल्पसत्थमणविणए, सेत्तं मण. विणए।से किंतं वइविणए?वइविणए दुविहे पण्णत्त तंजहा पसत्थवइविणए. अप्पसत्यवह विणएय॥ से किंतं पसत्थवइविणए ? पसत्थवइ विणए सत्तविहे ५०० अपावए जाव अभूताभिसंकणे,सेतं पसत्थवइविणए।से किंतं अप्पसत्यवइविणए ? अप्पमत्थवइ विणए
सत्तविहे ५० तंजहा गावए सावजे जाव भूताभिसंकणे, सेत्तं अप्पसत्थवइविणए ॥ सेत्तं के मात भेद कहे हैं ? पापकारी, सावद्य, उपक्रम सहित आश्रव करनेवाला, छेद करनेवाला, भूत को दुःख करनेवाला, यह अप्रशस्त मन विनय कहा. यह मन विनय हुवा. वचन विक्रय किसे कहते हैं ? वचन विनय के दो भेद कहे हैं. प्रशस्त वचन विनय और अप्रशस्त वचन विनय. प्रशस्त वचन विनय किसे कहते हैं ? प्रशस्त वचन विनय के सात भेद कहे हैं. अपापकारी यावत् भूतों को त्रास नहीं करनेवाला यह
स्त वचन विनय हुवा. अप्रशस्त वचन विनय किसे कहते हैं ? अप्रशस्त वचन विनय के सात 16कहे हैं ? पापकारी यावत् भूतों को दःख करनेवाला, यह अपदस्त वचन विनय. यह वचन विनय हुवा..
१ अनुवादक-बालब्रह्मचारी मुनि श्री अमोलक ऋषिजी 8+
*प्रकाशक-राजाबहादुर लाला सुखदेवसहायजी ज्वाला प्रसादजी *