Book Title: Agam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Sthanakvasi
Author(s): Amolakrushi Maharaj
Publisher: Raja Bahaddurlal Sukhdevsahayji Jwalaprasadji Johari
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सूत्र
Aindian
श्वासादणया, किरियाए अणञ्चासादणया, संभोग अणच्चासादणया, आभिणिवोहियणाणस्स अणञ्चासादणया, जाव केवलणाणस्स अणचासादणया; एएसिं चेव भत्ति बहुमारणं , एएसिं चेव वण्णसंजलणता ॥ सेत्तं अणच्चासादणयाविणए ॥ सेत्तं दसणविणए ॥ से किंतं चरित्तविणए ? चरित्तविणए पंचविहे पण्गत्ते तंजहा सामा. इयचरिचविणए जाव अहक्खाय चरितविणए ॥ सेत्तं चरित्तविणए ॥ से किंतं मणविणए ? मगविणए दुविहे प० तं० पसत्थमणविणएय अपसत्थमगविणएय ॥
से किंतं पसत्यमणविणए ? पसत्थमगविणए सत्तविहे १० तंजहा अपावए, असावजे, भावार्थ शातना विनय हुवा. दर्शन विनय के ये भेद हुये. चारित्र विनय के कितने भद कहे हैं ! चारित्र विनय के
पांच भेद कई हैं. सामायिक चारित्र यावत् यथाख्यात चारित्र विनय यह चारित्र का विनय. मन विनय किसे कहते हैं. मन विनय के दो भेद कह हैं. प्रशस्त मन विनय, और अप्रशस्त मन विनय, प्रशस्त मन विनय किसे कहते हैं? प्रशस्त मन विनय के सात भेद कहे हैं. १ आपापकारी २ असावद्यकारी ३ अक्रिय,
म अनगश्रा करनेवाला. ६ छेदन भदन के विचार रहित और ७किसी भी प्राणिको भयो । 15 उपद्रा रहित यह प्रशस्त मन विनय. अप्रशस्त मन विनय के कितने भेद कहे हैं ? अप्रशस्त मन विनय ।
पच्चीस शतक का सातवा उद्देशा
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