Book Title: Agam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Sthanakvasi
Author(s): Amolakrushi Maharaj
Publisher: Raja Bahaddurlal Sukhdevsahayji Jwalaprasadji Johari
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पंचमांगविवाह पण्णत्ति (भगवती) सूत्र 48
वियाउयं पकरेंति ? गोयमा ! अज्झवसाणणिव्वत्तिएणं करणोवाएणं, एंव खल ते जीश परभवियाउयं पकरेंति ॥३॥ ते सिसं भंते ! जीया कहंगती पवत्तइ? गोयमा ! आउक्खएणं भवक्खएणं टिईक्खएणं एवं खलु तेसिणं जीवाणं गतिपवत्तइ ॥ ४ ॥ तेणं भंते ? जीवा आइडीए उववज्जति ? गोयमा ! आइटीए उववजंति णो परिड्डीए उववज्जति ॥ ५ ॥ तेणं भंते ! जीवा किं. आयकम्मुणा उववनंति परकम्मुणा उववजति ? गोयमा ! आयकम्मुणा उववजति, णो. परकम्मुणा उववति ॥ ६॥
तेणं भंते ! जीवा किं आयप्पओगेणं उववजंति परप्पओगेणं उववजति ? गोयमा ! आयुष्य कैसे करे ? अहो गौतम ! जीव परिणाम व मन वचन काय के योग इन दोनों मे बना हुवा वैसे ही 13 मिथ्यात्वादिक कर्म बंध हेतु वाला करणोपाय इन से ही जीव परभव का आयुष्य करते हैं. ॥ ३ ॥ अहो , भगवन् ! ये जीवों कैसे गति करे ? अहो गौतम : आयुष्य, भव व स्थिति क्षय से वे जीवों गति करे ॥ ४ ॥ अहो भगवन् ! वे जीवों आत्म ऋद्धि से उत्पन्न हो या परऋद्धि से उत्पन्न होवे ? अहो गौतम ! ! आत्मद्धि से उत्पन्न होवे परंतु परऋद्धि से उत्पन्न नहीं होबे. ॥ ५ ॥ अहो भगवन् ! वे जीवों क्या आत्म कर्म से उत्पन्न होते हैं या अन्य के कर्म से उत्पन्न होते है ? अहो गौतम ! आत्म कर्म उत्पन्न होते हैं परंतु अन्य के कर्म से नहीं उत्पन्न होते हैं. ॥ ६ ॥ अहो भगवन् ! वे जीवों क्या आत्म प्रयोग से उत्पन्न होते ।
8. पचीसत्रा शतक का सातवा उद्देशा
भावार्थ
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