Book Title: Agam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Sthanakvasi
Author(s): Amolakrushi Maharaj
Publisher: Raja Bahaddurlal Sukhdevsahayji Jwalaprasadji Johari
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48 अनुवादक-बालब्रह्मचारी मुनि श्री अमोलक ऋषिजी -
हालिद सुकिल्लएय सब मेते एक्कग दुयग तियग चउक्क पंचग संजोगेणं इयालं भंगसयं भवंति ॥ मंधा जहा चउप्पदसिपस्स ॥ रसा जहा वण्णा ॥ फासा जहा चउप्पदेसियस्स ॥ ५॥ छपदसिएणं भंते ! कइवण्णे ? एवं जहा पंचपएसिए जाव सिय चउप्फासे १ण्णत्त ॥ जइ एगवण्णे एगवण्णदुवण्णा जहा पंचपएसियस्स ॥ जइ तिवण्णे सिय कालएय णीलएय लोहियएय एवं जहंव पंचपएसियस्स
सत्त भंगा जाव सिय कालगाय णीलगाय लोहितएय ७। सिय कालगाय भांगा होता है. इस तरह एक दो, तीन, चार व पांच संयोगी के १४१ भांगे वर्ण के होते हैं. गंध का चार प्रदेशिक स्कंध जैसे कहना, रस का वर्ण जैसे कहना और स्पर्श का चारप्रदेशिक स्कंध जैसे ३६ भांगे कहना. यों वर्ण के १४१, गंध के , रस के १४१, और स्पर्श के ३६, सब मीलकर ३२४, भांगे पांच प्रदेशिक कंध के हुए ॥ ५॥ अहो भगवन् ! छ प्रदेशिक स्कंध में कितने वर्ण गंध रस स्पर्श कहे ? अहो भी गौतम ! पांच प्रदेशिक स्कंध का कहा वैसे ही यहां कहना यावत् पांच वर्ण, दो गंध, पांच रस व चार स्पर्श कहे हैं. यदि एक वर्ण होवे तो स्यात् काला. हरा व लाल यों जैसे पांच प्रदेशी में सात भांगे कहे तैसे यहां भी करना उस का सातवा भांगा इस तरह स्यात् काले अनेक हरे अनेक और लाल एक और
* प्रकाशक-राजाबहादुर लाला मुखदेवसहायजी ज्वालाप्रसादजी -
भावार्थ