Book Title: Agam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Sthanakvasi
Author(s): Amolakrushi Maharaj
Publisher: Raja Bahaddurlal Sukhdevsahayji Jwalaprasadji Johari
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सूत्र
भावाथ
4 अनुवादक - बालब्रह्मचारी मुनि श्री अमोलक ऋषिजी +
सन्त भवग्गहणाई, कालादेसेणं जहण्णेणं वावीसं सागरोवमाई दोहिं अंतोमुहुत्तेहिं अग्भहियाइं उक्कोसेणं छासट्ठि सागरोवमाई चउहिं पुव्व कोडीहिं अन्भहियाई एवइयं जाव करेज्जा सोचे जहण्ण कालट्टिईएस उववण्णो सव्वेव वत्तव्त्रया जाव भवादेसोत्ति कालादेसेणं जहणणं कालादेसोवि तहेव जाव चउहिं पुव्वकोडीहिं अब्भहियाई एवइयं जात्र करेजा || २ || सोचेच उक्कोसकालट्ठिईएम उववण्णो सन्वेव लद्धी जाव अणुवधोत्ति भवादेसेणं जहणेणं तिण्णि भवग्गहणाई उक्कोसेणं पंच भवग्गहणाई, कालादेसेणं जहणणं तेत्तीसं सागरोत्रमाई दोहिं अंतोमुहुत्तेहिं अन्भहियाई उक्कोसेणं छात्राट्ठ संघयनवाला सातवी नरक में उत्पन्न होवे, स्त्री वेद उत्पन्न होवे नहीं, शेष अनुबंध पर्यंत वैसे ही कहना. भवादेश से जघन्य तीन भव उत्कृष्ट सात भव कालादेश से जघन्य बावीस सागरोपम और दो अंतर्मुहूर्त अधिक. ( प्रथम और अंतिम तिर्यंच के भव के दो अंतर्मुहूर्त जानना ) उत्कृष्ट छासठ सागरोपम और चार पूर्व क्रोड अधिक. इतना यावत् करे. वही जघन्य स्थिति में उत्पन्न हुवा वगैरह सब वक्तव्यत' भवादेश पर्यंत पूर्वोक्त जैसे कहना. कालादेश से जो जघन्य कालादेश पहिले कहा वही यहां कहना यायत् उपर चार पूर्वक्रोड अधिक इतना यावत् करे. वही उत्कृष्टस्थितिवाली नरक में उत्पन्न होबे तो अनु
* प्रकाशक- राजाबहादुर लाला सुखदेवसहायजी ज्वालाप्रसादजी *
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