Book Title: Agam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Sthanakvasi
Author(s): Amolakrushi Maharaj
Publisher: Raja Bahaddurlal Sukhdevsahayji Jwalaprasadji Johari
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12 जइ पडिसेवए होजा किं मूलगुणपडिसेवए होज्जा, उत्तरगुणपडिसेवए होजा? मोयमा!
..जो मूलगुणपडिसेवए होजा, उत्तरगुणपडिसेवए होज्जा, उत्तरगुणपडिसवमाणे, दसविहस्स पञ्चक्खाणस्स अण्णयरं पडिसेवेजा । पडिसेवणाकुसीले जहा पुलाए ॥ कसायकुसीले पुच्छा ? गोयमा ! णो पडिसेवए होज्जा ॥ अपडिसेवए होजा एवं णियंठेधि ।। एवं सिणातेवि ॥ ७ ॥ पुलाएणं भंते ! कइसु णाणेसु होज्जा ? गोयमा ! दोसवा, तिसुवा होज्जा, दोसु होजमाणे दोस आभिणिवोहिय गाणेसु मुअणाणसु
होजा, तिसु होजमाणे तिसु आभिणियोहिय गाणेसुअणाणहिणाणेसु होज्जा । भावार्थ कुशकी पृच्छा, अहो गौतम ! प्रति सेवक होवे परंतु अप्रतिसेवक होवे नहीं. यदि प्रति सेवक होवे. तो
क्या मूलगुन प्रतिसेवक होवे या उत्तर गुण प्रति सेवक होवे ? अहो गौतम ! मूलगुण प्रतिसेवक होवे नहीं परंतु उत्तर गुण प्रति सेवक होवे. उत्तर गुण की प्रति सेवना करते दश प्रत्याख्यान में से किसीएक
प्रत्याख्यान का प्रति मेवन करे. प्रतिसेवना कुशील का पुलाक जैसे कहना. कषाय कुशील की पृच्छा, 7. अहो गौतम ! प्रतिमेवक होवे नही परंतु अप्रति सेवक होवे. ऐसे ही निग्रंथ व स्नातक का जानना ॥७॥
अब ज्ञानदार. मो भगवन् ! पुलाक कितने ज्ञान में होवे ? अहो गौतम ! पुलाक दो अथवा तीन
पंचमाङ्ग विवाह पण्णत्ति ( भगवति ) सूत्र 484
पच्चीसवा शतक का छठा उद्देशा 488
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