Book Title: Agam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Sthanakvasi
Author(s): Amolakrushi Maharaj
Publisher: Raja Bahaddurlal Sukhdevsahayji Jwalaprasadji Johari
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48 अनुवादक-बालबमचारी मुनि श्री अमोसक ऋपिणी ।
यस्स एच्छा ? गोयमा ! असंखेजा अंतोमुहत्तिया संजमदाणा वणता । अहक्खाय संजयस्स पुच्छा ? गेयमा ! एगे अजहण्णमणकोसए संजमट्ठाणे पण्णत्ते ॥ एएसिणं . भंते ! सामाइय छेदोवटावणिय परिहारविसुद्धिय सुहुमसंपराय अहक्खाय संजमटाणाणं कयरे २ जाव बिसेसाहियावा ? गोपमा ! सम्बत्योवे अहक्खायसंजमस्स एगे अजहण्ण मणुक्कासए संजमट्ठाणे, सुहुमसंपराय संजयस्स अंतीमुहुत्तिया संजम ढाणा असंखेजगणा, परिहारविसुद्धियस्स संजमट्ठाणा असंखेजगुणा, सामाइयमंज.
यस्स छेदोवट्ठावणियस्स एएसिणं संजमट्ठाणा दोहवि तुल्ला असंखेजगुणा ॥ १४ ॥ संपराय की पृच्छा, अहो गौतम! असंख्यात अंतर्मुहूर्नवाले संयम स्थान कहे हैं. यथारूयात की पृच्छा, हो गोतम ! अजघन्य अनुत्कर्ष एक संयम स्थान कहा है. अहो भगवन् ! इन सामायिक पदोपस्थापनीय, परिहारविशुद, सूक्ष्मसंपराय और यथाख्यात के संयप स्थान में कौन किस से अन्य गुत यावत् विशे पाधिक हैं? अहो गौतम ! सब से थोडा पथारुयात का एक अजघन्य अनुवर्ग संयम स्थान, इस से सूक्ष्म संपराय के अंतर्मुर्तिक संयम स्थान असंख्यातगुने, इस से परिहारविशुद्ध के संयम स्थान मसंख्यातगुने, इस से सामायिक पदोपस्थापनीय इन दोनों के संयम स्थान परस्पर नुश्य र असंख्यात
.प्रकाशक-राजाबहादुर लाला.मुखदेव सहायजी उचलायसादी