Book Title: Agam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Sthanakvasi
Author(s): Amolakrushi Maharaj
Publisher: Raja Bahaddurlal Sukhdevsahayji Jwalaprasadji Johari
View full book text
________________
सूत्र
भावार्थ
4 अनुवादक बालब्रह्मचारीमुनि श्री अमोलक ऋषिजी+
पडिकमणारिहे, तदुभयारिह, विवेगारिहे, विउसग्गारिहे, तवारिहे, छेदारिहे, मूलारिहे, अणंपारि, पारंचियारिहै ॥ १ ॥ दुविहे तत्रे पण्णत्ते, तंजहा ! वाहिरिएय, अभितरिएय ॥ १ ॥ सेकितं बाहिरिए तवे ? वाहिरिएतवे छान्वहे पण्णत्ते, अणसण ऊणोयरिया, भिक्खा यरिया, रसपरिच्चाओ || कायकिलेसो पडिसंलीणया ॥ से किंतं अणसणे ? अणसणे दुविण जहा इत्तरिएय आवकहिएय || सर्कितं इत्तरिए ? इत्तरिए अणेगविहे को याचना पूर्वक ग्रहण करे ९ अन्य आचार्य की पास ज्ञानादि निमित्त रहे और १० प्रतिलेखनादि (क्रिया कालोकाल करे. दश प्रकार के प्रायच्छित्त कहे हैं ? आलोचना गुर्वादिक की पास आलोचना कर शुद्ध होना २ प्रतिक्रम ३ आलोचना व प्रतिक्रमण ४ विवेक आहारउपधिकात्याग करना ५ कायोसर्ग कर के शुद्ध होना व आयंविलादि तप से शुद्ध होना ७ छेद दीक्षा में छेद देकर छोटी करना ८ (पुन:महाव्रत की आरोपना कर शुद्ध होना ९ तपादि कर के अत्यंत शक्ति हीन होकर शुद्ध होना और १० लिंगपरावर्त कर गच्छ बाहिर रखकर शुद्ध होना || १ || अब आगे तप के सामान्य १२ व उत्कृष्ट ३५४ भेद कहते हैं. तप के दो भेद कहे हैं. १ बाह्य और २ आभ्यंतर तप. बाह्यतप किसे कहते हैं ? बात के छ भेद कहे हैं जिन के नाम अनशन २ अवमोदर्य २ भिक्षाचरि ४ रसपरित्याग ५ काया क्लेश और प्रतिसंलीनता. अनशन के कितने भेद कहे हैं ? अनशन के दो भेद कहे हैं. १ इत्वरिक और
* प्रकाशक राजाबहादुर लाला सुखदेवसहायजी ज्वालाप्रसादजी *
२८८०