Book Title: Agam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Sthanakvasi
Author(s): Amolakrushi Maharaj
Publisher: Raja Bahaddurlal Sukhdevsahayji Jwalaprasadji Johari
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भावा
पंचमाङ्ग विवाह पण्णत्ति ( भगवति ) सूत्र 488+
तो चेव ॥ १ ॥ कइविहाणं भंते ! पडिसेवणा पण्णता ? गोयमा ! दसविहा पडिसेवणा पण्णसा, तंजहा-दप्पप्पमायणाभोगे, आउरें आउतीतिय । संकिण्णे सहसकारे, भयंप्पदोसायवीससा ॥ २ ॥ दस आलोयणा दोसा पण्णत्ता, तंजहा-आकंपइत्ता,
अणुमाइत्ता ; जंदिट्ठ वादरंच सुहुमंच । छण्हं सहाउलयं बहुअव्वत्त तरसेवि ॥ दसहिं अथवा तप का कथनं करते हैं. १ दोष लगाना सो प्रतिसेवना २ शुद्धि निमित्त आलोचना करना, । आलोचना करनेवाला, ४ आलोचना देनेवाला, ५ समाचारी, ६ प्रायश्चित्त और ७ तप. इन सातों काई कथन आगे करते हैं. अहो भगवन् ! प्रतिसेवना. संयम की विराधनाके कितने भेद कहे हैं ? अहो गौतम ! संयम विराधना के दश भेद कहे हैं. जिन के नाम-दर्प-चित्त का उन्माद से प्रतिभवना होवे २ प्रसादमद विषयादिक से ३ अज्ञान-अजानपना से ४ आतुरपना से अर्थात् क्षुधा तृषा से बाधित होकर मसि-ई सेवना होने ५ आपत् से ६ स्वपक्ष परपक्ष की ब्याकूलता से ७ सहसात्कार से ९ पद्वेष सो क्रोधादिक से
और १० निवार करने से अर्थात् पश्चाताप करने से. अब दश आलोचना के दोष कहते हैं. १ आचार्य मुझे थोडा प्रायश्चित्त देवेंगे इस बुद्धि से आलोचना के लिये वैयावृत्य करके आचार्य की आवर्जना करे, यह आलोचना दोष २ थोडा अपराध कहने से थोडा दंड मीलेगा ऐसा आलोवे ३ जो अपराध आचार्यने देखा उस की ही आलोचना करे ४ बादर-बड़ा अपराध की ही आलोचना करे परंतु जानता हुवाई ।
पच्चीसवा शतकका सातवा उद्देशा
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