Book Title: Agam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Sthanakvasi
Author(s): Amolakrushi Maharaj
Publisher: Raja Bahaddurlal Sukhdevsahayji Jwalaprasadji Johari
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सूत्र
भावार्थ
48 अनुवादक - बालब्रह्मचारी मुनि श्री अमोलक ऋषिजी
सिय नत्थि । जइ अत्थि जहणणं एक्कोवा दोवा तिण्णिवा, उक्कोसैणं वावटुसर्य अट्ठसयं खवगाणं चउपण्णं उवसमगाणं ॥ पुव्वपडिवण्णए पडुच्च जहणेणं कोडि हु उक्कोसेणवि कोडिपुहुत्तं ॥ ३५ ॥ एएसिणं भंते ! सामाइय छेदोवट्ठावणिय परिहार विसुद्धियसुहुमसंपराय अहक्खायसंजयाणं कयरे कथरे जाव विसेसाहियावा ? गोयमा ! सव्वत्थोवा सुहुमसंपराय संजया, परिहारविसुद्धिय संजया संखेज्जगुणा, अहक्खाय संजया संखेज्जगुणा, छेदोवट्ठावणिय संजया संखेजगुणा, समाइय संजया संखेज्जगुणा ॥ ३६ ॥ पडि सेवणदोसालोयणाय आलोयणारिहा चैव ॥ तत्तो सामायारी पायच्छित्तं { जैसे कहना. यथाख्यात की पृच्छा, अहो गौतम ! वर्तमान काल आश्री स्यात् होवे स्यात् न होवे होवे तो जघन्य एक दो तीन उत्कृष्ट १६२ जिस में १०८ क्षायक के और ५४ उपशम के. { प्रतिपन्न आश्री जघन्य उत्कृष्ट पूर्वक्रोड || ३५ ॥ अहो भगवन् ! इन सामायिक, छेदोपस्थापनीय, परिहार विशुद्ध, सूक्ष्म संपराय व यथाख्यात संयम में कौन किस से अल्प बहुत यावत् विशेषाधिक हैं ? अहो गौतम ! सब से थोडे सूक्ष्म संपराय संजमवाले इस से परिहार विशुद्ध संजमवाले संख्यातगुने, इस से यथाख्यात संयम वाले संख्यात गुने, इससे छेदोपस्थापनीय संयमत्राले संख्यात गुने, और इससे सामायिक संयम वाले संख्यात गुने || ३६ | इन संयति में कोई प्रति सेवनावत होते हैं कोई तपस्वी होते हैं, इसलिये प्रतिसेवना
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* प्रकाशक- राजाबहादुर लाला सुखदेवसहायजी ज्वालाप्रसादजी
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