Book Title: Agam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Sthanakvasi
Author(s): Amolakrushi Maharaj
Publisher: Raja Bahaddurlal Sukhdevsahayji Jwalaprasadji Johari
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43 अनुवादक - बालब्रह्मचारी मुनि श्री अमोलक ऋषिजी
भावार्थ ।
जहा कसा कुसीलस्स ॥ एवं छेदोवट्ठावणियस्स, परिहारविसुद्धियस्स जहा पुलागरस । सुमपरायस्स जहा नियंठस्स || अहक्वायरस जहा सिणायरस ॥ ३१ ॥ सामाइयसंजणं भंते ! लोगस्स किं संखेज्जइभागे होज्जा, असंखेज्जइभागे पुच्छा ? गोयमा ! णो संखेज्जइ जहा पुलाए एवं जाव मुहुमसंपराए अहक्खायसंजए जहा सिनाए ॥ ३२ ॥ सामाइयसंजएणं भंते ! लोगस्स किं संखेजइभागं फुगइ ? जहेव होजा तहेव फुलइ ॥ ३३ ॥ सामाइयसंजएणं भंते । कयरंमि भावे होजा ? गोयमा ! खओत्र समिए भावे होजा, एवं जाव सुहुमसंपराए || अहक्वायसंजए पुच्छा ? गोयमा ! कही वगैरह कपाय कुशील जैसे कहना. ऐसे ही छेदोपस्थापनीय का कहना, परिहार विशुद्ध का पुलाक
जैसे कहना, सूक्ष्म संपराय का निर्ग्रन्थ जैसे और यथाख्यात का स्नातक जैसे कहना ॥ ३१ ॥ अहो भगवन : सामायिक चारित्र क्या लांक के संख्यात वे भाग में हैं या असंख्यातवे भाग में हैं वगैरह पृच्छा अहो गौतम ! संख्यात भाग में नहीं वगैरह पुलाक़ जैने कहना. ऐसे ही सूक्ष्म संमराय पर्यंत कहना. यथाख्यात का स्नातक जैसे कहना. ॥ ३२ ॥ अहो भगवन् ! सामायिक क्या लोक के संख्यात भाग में { स्पर्शे वगैरह पृच्छा, अहो गौतम ! जैसे होने का कहा वैसे ही स्पर्शने का कहना. ॥ ३३ ॥ अहो भगवन्
* प्रकाशक- राजाबहादुर लाला सुखदेवसहायजी ज्वालाप्रसादनी
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