Book Title: Agam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Sthanakvasi
Author(s): Amolakrushi Maharaj
Publisher: Raja Bahaddurlal Sukhdevsahayji Jwalaprasadji Johari
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49 अनुवादक-बालब्रह्मचारी मुनि श्री अमोलक ऋषिणी
परिणामे होजा ? गोयमा ! जहणणं एक समयं उकासेणं देसूणाई पुवकोड़ी . ॥ २०॥ सामाइयसंजएणं भंते ! कइकम्मपगडीओ बंधइ ? गोयमा ! सत्तविह बंधए वा एवं जहा बउसे एवं जाव परिहारविमुहिए, सुहमसंपरागसंजए पुच्छा ? गोयमा ! आउयमोहणिजबजाओ, छ कम्मपगडीओ बंधइ, अहक्खायसंजमेजहा- सिणाए ॥ सामाइय संजएणं भंते ! कइकम्मपगडीओ वेदेइ ? गोयमा ! णियमं ___ अटुकम्मपगडीओ वेदेइ ॥ एवं जाव मुहुमसंपराए ॥ अहक्खाए पुच्छा, गोयमा !
सत्तविहवेदएदा, चउव्विह वेदएवा, सत्तवेदमाणे मोहणिजवजाओ सत्तकम्मपगडीओ उत्कृष्ट अंतमहत. कितने काल तक अवस्थित परिमाण रहे? अहो गौतम ! जघन्य एक समय उत्कृष्ट देश ऊणा पूर्व क्रोड. ॥ २० ॥ अहो भगवन् ! सामायिक संयमवाला कितनी कर्म प्रकृतियों का बंध. करे ? अहो गौतम ! सात कर्म प्रकृतियों का ऐसे ही जैसे वकुश का कहा वैसे ही कहना. यों परिहार विशुद्ध पर्यंत कहना. मूक्ष्म संपराय की पृच्छा, बहो गौतम ! आयुष्य व मोहनीय ये दो कर्म वर्ज कर
कर्म बांधे. यथाख्यातका सातक जैसे कहना ॥२॥ अहो भगवन् : सामायिक संयमवाला कितनी कर्म प्रतियों पेदे ! अहो गौतम ! आठ कर्म प्रकृतियों नियमा वेदे. या सूक्ष्म संपराय पर्यंत काना. पया
.पहायक-राजाबहाद्दर लाला मुखदेव सहायजी ज्वालाप्रसादजी.
भावार्थ