Book Title: Agam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Sthanakvasi
Author(s): Amolakrushi Maharaj
Publisher: Raja Bahaddurlal Sukhdevsahayji Jwalaprasadji Johari
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उक्कोसेणं चउद्दस पुव्वाई अहिजेजा, सुअवतिरित्तेवा होजा ॥ ७ ॥ सामाइय संजएणं भंते ! किं तित्थे होज्जा, अतित्थे होजा, ? गोयमा ! तित्थे वा होजा जहा कसायकुसीले, छेदोवट्ठावणिए परिहार विसुद्धिय सुहुमसंपराए जहा पुलाए, सेसा जहा सामाइय संजए ॥ ८ ॥ सामाइय संजएणं भंते ! किं सलिंगे होजा, अण्णालिंगे होजा ? जहा पुलाए, एवं छेदोवट्ठावणिएवि ॥ परिहारविसुद्धि संजएणं भंते ! किं पुच्छा ? गोयमा ! दवलिंगंवि भावलिंगवि पडुच्च सलिंगे होजा, णो अण्णलिंगे
पंचमांगविवाह पण्णत्ति ( भगवती) सूत्र
488%> पच्चीसवा शतक कामातवा उद्देशा 48
पूर्व. सूक्ष्म संपराय का सामायिक जैसे कहना. यथाख्यात की पृच्छा, जघन्य आठ प्रबचन माता के उत्कृष्ट चौदह पूर्व का अध्ययन करे अथवा श्रुत व्यतिरिक्त केवली भी होवे ॥ ७ ॥ तीर्थद्वार. अहो भगवन् ! सामायिक संयमी क्या तीर्थ में होवे या अतीर्थ में होवे ? अहो गौतम ! तीर्थ में होने वगैरह कषाय कुशील जैसे कहना. छेदोपस्थापनीय, परिहार विशुद्ध व सूक्ष्म संपराय का पुलाक जैसे कहना और यथाख्यात का सामायिक संयम जैसे कहना ॥ ८॥ लिंगद्वार. अहो भगवन् ! सामायिक संयमी* क्या सलिंग में हो या अन्यलिंग में होवे ? अहो गौतम ! पुलाक जैसे कहना, ऐसे ही छेदोपस्थापनीय, का जानना. परिहार विशुद्ध की पृच्छा, अहो मौतम ! द्रव्य.लिंग और भाव लिंग यों दोनों आश्री
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