Book Title: Agam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Sthanakvasi
Author(s): Amolakrushi Maharaj
Publisher: Raja Bahaddurlal Sukhdevsahayji Jwalaprasadji Johari
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ब्रह्मचारी मुनि श्री अमोलक ऋषिजी +
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गोयमा ! दोसुवा तिसुवा चउसुवा होज्जा, एवं जहा कसायकुसीलस्स तहा चत्तारि णाणाइं भयणाइं ॥ एवं जाव सुहुम संपराइएय ॥ अहक्खाय संजयस्स पंच णाणाई भयणाए जहा णाणुद्देसए ॥ सामाइयसंजएणं भंते ! केवइयं सुयं अहिजेजा ? गोयमा ! जहण्णेणं अट्ठ पवयणमायाओ जहा कसायकुसीले, एवं छेदोवढावणिएवि, परिहारविसुडिय संजए पुच्छा ? गोयमा ! जहण्णेणं णबमस्स पुवस्स आयारवत्थु, उक्कोसेणं असंपुण्णाइं दस पुल्याई अहिजज्जा; सुहुम संपराय संजए जहा सामाइय
संजए ॥ अहक्खायसंजए पुच्छा ? गोयमा! जहण्णेणं अट्ठपवयणमायाओ, द्वार. अहो भगवन् ! सामायिक चारित्र कितने ज्ञान में होने ? अहो गोतम ! दो, तीन अथवा चार में होवे ऐसे ही जैसे कषाय कुशील का कहा वैसे ही चार ज्ञान की भजना कहना. यों मूक्ष्म संपराय पर्यंत कहना. यथाख्यात में पांच ज्ञान की भजना. यो ज्ञान उद्देशा कहना. अब श्रुत आश्री पृच्छा, अहो भगवन् ! सामायिक संयती कितना श्रुत का अध्ययन करे ? अहो गौतम ! जघन्य आठ प्रवचन माता के ऐसे जैसे कषाय कुशील का कहा वैसे ही कहना. ऐसे ही छदोपस्थापनीय का जानना. परिहार विशुद्ध संयम की पृच्छा, अहो गौतम ! जघन्य नववा पूर्व की तीसरी · आचारवत्थु उत्कृष्ट अपूर्ण दश
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* प्रकाशक-राजाबहादुर लाला सुखदेवसहायजी बालाप्रसादनी *
भावार्थ
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