Book Title: Agam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Sthanakvasi
Author(s): Amolakrushi Maharaj
Publisher: Raja Bahaddurlal Sukhdevsahayji Jwalaprasadji Johari
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सत्र
मुहुम संपरायंसंजओ, अहक्खायमंजओयः जहा णियंठो ॥ २ ॥ सामाइय संज- - एणं भंते! किं सरागे होजा, वीतरागे होजा ? गोयमा ! सरागे होजा णो वीतरागे होजा, एवं जाव सुहुमसंपराए ॥ अहक्खायसंजए जहा णियंठे ॥ ३ ॥ सामाइय संजएणं भते ! किं ठियकप्पे होजा अठियकप्पेवा होजा? गोयमा ! ठियकप्पेवा होजा, अटियकप्पेवा होज्जा ॥ छेदोबट्टावणिय संजए पुच्छा ? गोयमा ! ठियकप्पे वा होज्जा णो अट्ठियकप्प होजा एवं परिहारविसुद्धिसंजमधि सेसा जहा सामाइय
48 पंचमान विवाह पण्णारी (भगवती ) सूत्र
8. पच्चीसवा शतक का सातवा उद्दशा
भावार्थ
पनीय चारित्र का कहना. परिहार विशुद्ध का पुलाक नियंठा जैसे पुरुष व पुरुष नपुंसक होवे, सूक्ष्म में संपराय व यथाख्यात का निर्ग्रन्य जैसे कहना ॥२॥ अब रागद्वार कहते हैं. अहो भगवन् ! सामायिक संयमवाला का सरागी होवे या वीतरागी होवे ? अहो गौतम ! सरागी होवे परंतु वीतरागी होवे नहीं.
एसे ही सूक्ष्म संपराय पर्यंत कहना. यथाख्यात का निर्ग्रन्थ जैसे कहना ॥ ३ ॥ कल्पद्वार. अहो भग-352 7वन ! सामायिक संयमी क्या स्थित कल्प या अस्थित कल्प में होवे ? अहो गौतम ! दोनों कल्प में
सामायिक चारित्र पाता है. छेदोपस्थापनीय की पृच्छा, अहो गौतम ! स्थित :कल्प में होवे परंतु अस्थित * कल्प में होवे नहीं. यों परिहार विशुद्ध का भी जानना. सूक्ष्म संपगय व यथाख्यात चारित्र का सामा