Book Title: Agam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Sthanakvasi
Author(s): Amolakrushi Maharaj
Publisher: Raja Bahaddurlal Sukhdevsahayji Jwalaprasadji Johari
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पंचांग विवाह पण्णत्ति (भगवती) सूत्र 48+
भावार्थ
गोयमा! दुविहे पण्णत्ते तंजहा संकिलिस्समाणएय विसद्धिमाणएय अहक्खाय संजए पुच्छा, गोयमा दुविहे पण्णत्ते तंजहा छउमत्थेय केवलीय ॥ गाहा-सामाइय म्मिउकए, चाउजामं अणुत्तरं धम्मं ॥ तिविहेण फासयंतो, सामाइय संजतो स खलु ॥१॥ छत्तगउ परियागं पोराणं जो वेति अप्पाणं ॥धम्ममि पंच जामे, छेदोवढाव.
णो स खलु ॥ २ ॥ परिहरतु विसुहतु, पंचजामं अणुत्तरं धम्मं ॥ तिविहेण फासयंता, आरोपण होवे और निरतिचार सो अतिचार लगे विना पुनः व्रतारोपण करना. जैसे श्री पार्थाथजी के संतानी ये श्री महावीर स्वामी के शासन में बन ग्रहण कर जावे. अहो भगवन् ! परिहार विशुद्ध के तिने भेद को हैं ? अहो गैतम ! परिहार विशुद्ध के दो भेद कहे हैं. परिहारविशुद्ध तप में प्रवेशिक हो तप करे. और परिहार विशुद्ध पूर्ण कर तप करे. अहो भगान् ! मूक्ष्पसंपराय के कितने भेद कहे हैं ? अहो गौतम ! सून संपराय के दो भेद कहे हैं. १ संक्लिश्यमान सो उपशमश्रंगीवाला और १२ विशुद्वयमान सो क्षपक श्रेणीवाला. अहो भगवन् ! यथाख्यात के कितने भेद कहे हैं ? अहो गौतम ! यथाख्यात के दो भेद कहे हैं. १ छमस्थ और २ केवली. अब इन पांचों चारित्र क स्वरूप करते हैं. जो सामायिक चारित्र ही अंगीकार करता है वह चार यामरूप श्रमण धर्म तीन करन तीन योग से सीता हुना सामायिक संयति कहलाता है. जो पूर्व पर्याय छेद कर आत्मा को पांच याम रूप धर्म में
388 पच्चीसवा शतक का सातवा उद्देशा PROrga