Book Title: Agam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Sthanakvasi
Author(s): Amolakrushi Maharaj
Publisher: Raja Bahaddurlal Sukhdevsahayji Jwalaprasadji Johari
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-बालब्रह्मचारी मुनि श्री अमोलक ऋषिजी +
भावाथ
कइणं भंते! संजया पण्णत्ता ? गोयमा ! पंच संजया पण्णत्ता तंजहा सामाइयसंजए छेओवढावणिय संजए, परिहारविंसुद्धि जए, सुहुम संपराय संजए, अहक्खाय संजए । सामाइय संजएणं भंते ! कइविहे पण्णत्ते ? गोयमा ! दुविहे पण्णत्ते २८४६ तंजहा इत्तरिएय आवकहिएय ॥ छेदोवट्ठावणिय संजमे पुच्छा? गोयमा! दुविहे पण्णत्ते तंजहा साइयारेय णिरईयारेय ॥ परिहारविशुद्धिय संजए पुच्छा ? गोयमा! दुविहे पण्णत्ते तंजहा णिव्विसमाणएय, णिन्विटुकाइएय ॥ मुहुम संपराय पुच्छा ?
छठे उद्देशे में निर्ग्रन्थ का स्वरूप कहा निर्ग्रन्थ संयति होने से सातवे उद्देशे में संयति का कथन करते. हैं. इस के ३६ द्वार गत उद्देशे जैसे जानना. अहो भगवन् ! संयति कितने कहे हैं ? अहो गौतम !
यति पांच कहे हैं. १. सामायिक संयति २ छेदोपस्थापनीय, ३ परिहार विशुद्ध,४मूक्ष्म संपराय और५यथाख्यात. अहो भगवन् ! सामायिक संयति के कितने भेद कहे हैं ? अहो गौतम ! सामायिक के दो भेदकहे हैं. १ इत्वरिक थोडे काल का प्रथम और अंतिम तीर्थंकर के समय में होवे क्यों कि सामायिक चारित्र में छ महिने रहे पीछ छेदोपस्थापनीय होता है. और २ यावत्कथित जावजी का शेष बाइस सीर्थकर अथा महाविदेह क्षेत्र के साधुओं को होता है. अहो भगवन् ! छेदोपस्थापनीय चारिष के कितने भेद कहे हैं? अहो गौतम ! दो भेद कहे हैं. सअतिचार मूल गुन के घातक को पुनः व्रत का
. प्रकाशक-राजाबहादुर लाला मुखदेवसहायजी ज्वालामसाइजी.