Book Title: Agam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Sthanakvasi
Author(s): Amolakrushi Maharaj
Publisher: Raja Bahaddurlal Sukhdevsahayji Jwalaprasadji Johari
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होजा, अहक्खाय संजमेवा होज्जा ॥ एवं सिणातेवि ॥ ६ ॥ पुलाएणं भंते ! किं पडिसेवए होज्जा अपडिसेवए होज्जा ? गोयमा! पडिसेवए होजा, णो अपडिसेंवए होजा॥ जइ पडिसेवए होजा किं मूलगुण पडिसेवए होज्जा, उत्तरगुणपडिसेवए होज्जा ? गोयमा!. मूलगुणपडिसेवए होजा, उत्तरगुणपडिसेवए । होजा ॥ . मूलगुणपडिसवमाणे पंचण्हं अणासवाणं अण्णयरं पडिसेवेजा,उत्तरगुणपडिसेवमाणे दसविहस्स पच्चक्खाणस्स अण्णयरं
पडिसेवेजा ॥ वउसेणं पुच्छा ? गोयमा ! पडिसेवए होज्जा, णो अपडिसेवए होज्जा । भावार्थ र यथाख्यात चारित्र हो. ऐसे ही स्नातक का कहना. ॥ ६ ॥ अब प्रतिसेवना
रद्वार कहते हैं अहो भगवन् ! पुलाक क्या प्रतिमेवक होवे या अप्रतिसवक होवे ? अहो गौतम :
प्रति सेवक होवे परंतु अप्रति सेवक होवे नहीं. यदि प्रतिसेवक है तो क्या मूल गुण प्रति सेवक या उत्तर गुन प्रति सेवक हावे ? अहो गौतम ! मूलगुन प्रतिसेवक व उत्तर गुन प्रति सेवक होवे. मूलगुन की प्रति सेवना करता हुवां प्राणातिपानादि पांच आश्रव में से एक भी आश्रव का मेवन करे और उत्तर गुन की पनि सेवना करता हुआ नवकारसी आदि दश विध प्रयाख्यान में से किसी एक की प्रतिसेवना · करे.
संयम प्रतिकूल संचलन कपायोदय से संयम विराधे उसे प्रतिसेवना कहते हैं. . . .
मुनि श्री अमोलक ऋषिजी *
. प्रकाशक-राजावहादुर लाला मुखदेवमहायजी चालाप्रसादजी
48 अनुवादक-बालब्रह्मय