Book Title: Agam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Sthanakvasi
Author(s): Amolakrushi Maharaj
Publisher: Raja Bahaddurlal Sukhdevsahayji Jwalaprasadji Johari
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पुन्बस्स ततियं आयारवत्थु, उक्कोसणं णवपुब्बाई, अहिज्जेज्जा: ॥ वउसेणं पुच्छा, गोयमा ! जहण्णेणं अट्ठ पवयण मायाओ उकोसेणं दस पुन्नाई अहिजेजा। एवं पडिसेवणाकुसीलेवि ॥ कसायकुसीलेणं पुच्छा, गोयमा ! जहण्णेणं अट्ठ पक्यणमायाओ, उक्कोसेणं चउद्दस पुब्वाई, अहिजेजा ॥ एवं णियेठेवि ॥ सिणातेणं । पुच्छा, गोयमा ! सुयवतिरित्ते होज्जा ॥ ८॥ पुलाएणं भंते ! किं तित्थे होजा . अतित्थे होजागोयमा!तित्थे होज्जा णोअतित्थे होज्जा एवं वउसेवि॥ एवं पडिसेवणा कुसी
लेवि कसायकुसीले पुच्छा ? गोयमा ! तित्थेवा होज्जा अतित्थेवा होज्जाजइ तित्थेभावार्थ स्नातक होवे. अहो भगवन्! पुलाक कितने भुत का अभ्यास करे ?अहो गौतम ! जपन्य नवपूर्व की तीसरी M आचार वत्थु पर्यंत उत्कृष्ट नषपूर्व, बकुश की पृच्छा, अहो गौतम ! जघन्य आठ प्रवचन माता के उत्कृष्ट
दश पूर्व. ऐसे ही मतिसेवना कुशील का जानना. कषायकुशील की पृच्छा, अहो गौतम ! जघन्य आठ प्रवचन माता के उत्कृष्ट चौदह पूर्व ऐसे ही निर्जन्य का कहना. स्नातक की पृग, अहो गौतम 1131
स्नातक झुंतव्यतिरिक्त होवे... ॥ ८ ॥ अहो . भगवन् ! पुलाक क्या : तीर्थ में हो वा अतीर्थ में हो ? अहो गौतम ! तीर्य में होने परंतु तीर्थ में नहीं हो. ऐसे ही
पंचमाङ्ग विवाह पण्णत्ति ( भगवती ) सूत्र 488
पञ्चसिवा शतक का छठा उद्देशा
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