Book Title: Agam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Sthanakvasi
Author(s): Amolakrushi Maharaj
Publisher: Raja Bahaddurlal Sukhdevsahayji Jwalaprasadji Johari
View full book text
________________
4
हारए होज्जा, एवं जाव गियंठे ॥ सिणाएणं पुच्छा ? गोयमा ! आहारए वा होजा अणाहारए वा होजा ॥ २७ ॥ पुलाएणं भंते ! कइ भवग्गहणाई होजा ? गोयमा जहण्णेणं एवं उक्कोसेणं तिणि ॥ वउसेणं पुच्छा ? गोयमा! जहण्णेणं एक,
२८३७ उक्कोसेणं अट्ठ ॥ एवं पडिसेवणा कुसीलेवि ॥ एवं कसायकुसीलेवि ॥ णियंठे जहाँ पुलाए ॥ सिणाएणं पुच्छा ? गोयमा ! एकं ॥ २८ ॥ पुलागस्सणं भंते! एगे. भवग्गहाणिय केवइया आगरिसा पण्णत्ता ? गोयमा ! जहण्णेणं एको, उक्कोसेणं
तिण्णि ॥ वउसस्सणं पुच्छा ? गोयमा ! जहण्णेणं एको उक्कोसेणं सयग्गसो एवं भावार्थ अहो गौतम ! आहारक है परंतु अनादारक नहीं है.. ऐसे ही निर्ग्रन्थ पर्यंत कहना. स्नातक की पृच्छा,
आहारक अथवा अनाहारक होवे ॥ २७ ॥ भवद्वार. अहो भगवन् ! पुलाक में कितने भव होये ? अहो ।
गौतम ! जघन्य एक उत्कृष्ट तीन भव में होवे. बकुश की पृच्छा, अहो गौतम ! जघन्य एक उत्कृष्ट . आठ भव. ऐसे ही प्रतिसेवना व कपाय कुशील का जानना. निर्ग्रन्थ का पुलाक जैसे कहना. सातककी
पृच्छा, अहो गौतम ! एक भव में ॥ २८ ॥ अहो भगवन् ! पुलाक एक भव में कितनी वक्त आवे है। अहो गौतम ! जघन्य एक उत्कृष्ट तीनवार आवे. कुश की पृच्छा, अहो गौतम ! जघन्य एक उत्कृष्ट
पण्णत्ति (भगवती) सूत्र *882
- पचासवा शतक का छठा उद्दशा १९६०