Book Title: Agam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Sthanakvasi
Author(s): Amolakrushi Maharaj
Publisher: Raja Bahaddurlal Sukhdevsahayji Jwalaprasadji Johari
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जहण्णेणं एवं समयं उक्कोसेणं देसूणाई पुवकोडी, ॥ एवं पडिसवणाकुसीलेवि, कसायकुसीलेवि एवंचेव ।। णियंठेणं पुच्छा? गोयमा ! जहण्णेणं एकं समयं उक्कोसेणं अंतोमुहत्तं ॥ सिणाएणं पुच्छा ? गोयमा ! जहण्णेणं अंतोमुहुत्तं उक्कोसेणं देसूणाई पुवकोडी ॥ पुलागाणं भंते ! कालओ केवचिरं होइ ? गोयमा! जहण्णेणं एकं समयं उक्कोसेणं अंतोमुहुत्तं ॥ वउसाणं भंते ! पुच्छा ? गोयमा सबढ़॥ एवं जाव कसायकुसीला॥ णियंठा जहा पुलागासिणाता जहावउसा ॥३०॥ पुलागस्सणं भंते !
केवइयं कालं अंतरं होइ ? गोयमा ! जहण्णेणं अंतोमुहुत्तं उक्कोसेणं अणंतं कालं उत्कृष्ट अंतर्मुहूर्त तक रहे. बकुश का प्रश्न, अहो गौतम ! जघन्य एक समय उत्कृष्ट देश ऊणा पूर्व क्रोड ऐसे ही प्रतिसेवना कुशील व कषाय कुशील का कहना. निर्ग्रन्थ की पृच्छा, अहो गौतम ! जघन्य एक समय उत्कृष्ट अंतर्मुहूर्त. स्नातक की पृच्छा, जघन्य अंतर्मुहूर्त उत्कृष्ट देश ऊणा पूर्व क्रोड. अहो भगवन् ! बहुत पुलाक कितना काल तक रहे ? अहो गौतम ! जघन्य एक समय उत्कृष्ट अंतर्मुहूर्त. बकुश मब काल रहे. ऐसे ही कषाय कुशील पर्यंत कहना. निर्ग्रन्थ का पुलाक जैसे और स्नातक का वकुश जैसे कहना। ॥ ३० ॥ अहो भगवन् ! पुलाक का कितना अंतर होवे ? अहो गौतम ! जघन्य अंतर्मुहून उत्कृष्ट ।
marnamanand
- पंचमांग विवाह पण्णत्ति (भगवती) मूत्र
पच्चीसवा शतक का छठा उद्देशा 4.28.
भावा
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