Book Title: Agam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Sthanakvasi
Author(s): Amolakrushi Maharaj
Publisher: Raja Bahaddurlal Sukhdevsahayji Jwalaprasadji Johari
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मुनि श्री अमोलक ऋषिजी
अणंताओ ओसप्पिणीउस्साप्पणीओ कालओ, खेत्तओ अवहूँ पोग्गल परियर्ट देसूणं ॥ एवं जाब णियंठस्स ॥ सिणायस्सणं पुच्छा ? गोयमा ! णस्थ अंतरं ॥ पु लागाणं भंते ! केवइयं कालं अंतर होइ ? गोयमा ! जहण्णण एक समय, उक्कोसणं संखजइवासाइं ॥ वउसाणं भंते ! पुच्छा ? गोयमा ! णस्थि अंतरं एवं जाव कसाय कुसीलाणं ॥ णियठाणं पुच्छा ? गोयमा ! जहण्णेणं एकं समय उक्कोसणं छम्मासा सिणायाणं जहा वउसाणं ॥ ३१ ॥ पुलागस्सणं भेत ! कइ समुग्घाया पण्णत्ता ?
गोयमा ! तिण्ण समुग्धाया पण्णत्ता, तंजहा वेयणासमुग्घाए कसायसमुग्धाए, मारणांअनंत काल, काल से अनंत अवसर्पिणी उत्सर्पिणी क्षेत्र से देशृणा अर्धपुद्गल परावर्त. ऐसे ही निर्ग्रन्थ पर्यन्त कहना. स्नातक की पृच्छा, अहो गौतम ! स्नातक का अंतर नहीं है. अब बहुत आश्री प्रश्न. अहो । भगवन् ! बहुत पुलाकका कितना अंतर कहा? अहो गौतम! जघन्य एक समय उत्कृष्ट संख्यात काल. बकुशकी ई पृच्छा, अहो गौतम ! बकुश का अंतर नहीं है, क्यों कि वे सदैव रहते हैं. ऐसे ही कषाय कुशील पर्यन्त कहना. निर्ग्रन्थ की पृच्छा, अहो गौतम ! जघन्य एक समय उत्कृष्ट छ मास. स्नातकका बकुश जैसे कहना. ॥ ३१ ॥ अहो भगवन् ! पुलाक को कितनी समुद्धात कही ? अहो गौतम ! तीन समुदात कही.
• प्रकाशक-राजाबहादुर लाला मुखदेव सहायजी ज्वालाप्रसादजी .
भावार्थ
अनुवादक-बालब्रह्मचा
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