Book Title: Agam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Sthanakvasi
Author(s): Amolakrushi Maharaj
Publisher: Raja Bahaddurlal Sukhdevsahayji Jwalaprasadji Johari
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दुसमाकाले होज्जा एवं संतिभावेणवि. जहा पुलाए, जाव जो सुसम. सुसमाकाले होज्जा ॥ साहरणं पडुच्च अण्णयरे समाकाले होज्जा ॥ जइ णो ओसप्पिणी णो उस्सप्पिणीकाले होज्जा पुच्छा ? गोयमा! जम्मणं संतिभावं पडुच्च णो सुसम सुसमापलिभागे होज्जा, जहेव पुलाए जाव दुस्सम सुसमापलिभागे होज्जा साहरणं पडुच्च अण्णयरे पलिभागे होज्जा ॥ जहा वउसे एवं पडिसेवणा कुसीलेवि॥ एवं कसायकुसीलेविाणियंठो सिणाओय जहा पुलाए, णवरं एएसिं अब्भहियं साहरणं भाणियव्वं ॥ सेसं तंचेव ॥१३॥ पुलाएणं भंते ! कालगए समाणे कं गति गच्छइ ?
गोयमा! देवगतिं गच्छइ, देवगति गच्छमाणे किं भवणवासीसु उववजेज्जा, वाणमंभावार्थ यदि नो अवसर्पिणी काल में हो तो पृच्छा, अहो गौतम ! जन्म व विद्यमान अवस्था आश्री सुषम सुषम
के पलिभाग में होवे नहीं वगैरह जैसे पुलाक का कहा वैसे ही कहना यावत् दुपम सुषम पलिभाग में होवे, साहरण आश्री अन्य पलिभाग में भी होवे. जमे बकुश का कहा वैसे ही प्रतिसेवना कुशील व कपाय कुशील का कहना. निर्ग्रन्थ व स्नातक का पुलाक जैसे कहना परंतु साहरण होवे सो कहना. पुलाक का
साहरण होवे नहीं. शेष वैसे ही कहना।।१३॥अव गति द्वार कहते हैं. अहो भगवन् ! पुलाकमें काल करनेवाला 15 कौनसी गति में जाव ? अहो गौतम ! देवगति में जावे. देवगति में जाता हुवा क्या भवनवासी, वाणव्यंतर,
मुनि श्री अमोलक ऋषनी
• पकाशक-राजाबहादूर लाला सुखदेवसहायजी ज्वालाप्रसादजी*
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११ अनुवादक-वाल