Book Title: Agam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Sthanakvasi
Author(s): Amolakrushi Maharaj
Publisher: Raja Bahaddurlal Sukhdevsahayji Jwalaprasadji Johari
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अनुवादक-बालब्रह्मचारी मुनि श्री अमोलक ऋषिजी
पुलाएणं भंते ! देवसु उववजमाणे किं इंदत्ताए उववज्जेज्जा सामाणियत्ताए उववजेज्जा तायत्तीसगत्ताए उववजेज्जा, लोगपालत्ताए उववजेज्जा, अहमिंदत्ताए उववजेज्जा ? गोयमा ! अविराहणं पडुच्च इंदत्ताए उववजेज्जा सामाणियत्ताए उववज्जेजा, तायत्तीस गत्ताए उववज्जेज्जा, लोगपालत्ताए उववज्जेजा, जो अहींमंदत्ताए उववज्जेज्जा। विराहणं पडुच्च अण्णयरेसु उववज्जजा ॥ एवं वरसेवि ॥ एवं पडिसेवणा कुसीलेवि ॥ कसाय कुसीले पुच्छा, गोयमा ! अविराहणं पडुच्च इंदत्ताए वा उववज्जेजा जाव
अहमिंदत्ताए उववज्जेज्जा विराहणं पडुच्च अण्णयरे मु उववज्जेज्जा ॥ णियंठे पुच्छा ? गौतम ! सिद्ध गति में जावे. अहो भगवन् ! पुलाक देवलोक में उत्पन्न होता हुवा क्या इन्द्रपने, सामानिकपने, त्रायति शकपने, लोकपालपने या अहमेन्द्रपने उत्पन्न होवे ? अहो गौतम ! अविराधना आश्री इन्द्र, सामानिक, त्रायत्रिंशक व लोकपाल में उत्पन्न होवे परंतु अहमेन्द्र में उत्पन्न होवे नहीं. विराधना आश्री किमी अन्य देवतापने उत्पन्न होवे, एसे ही बकुश, व पडिसेवणा कुशीलका जानना. कषाय कुशील की पृच्छा, अहो गौतम ! अविराधना आश्री इन्द्रपने यावत् अहमेन्द्रपने उत्पन्न होवे और विरा-१. धना आश्री किसी अन्य देवतापने उत्पन्न होवे. निग्रंथ की पृच्छा, 'अहो गौतम ! इन्द्र यावत् लोक
प्रकाशक-राजाबहादर लाला सुखदेव सहायजी ज्वालाप्रसादजी .
भावार्थ