Book Title: Agam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Sthanakvasi
Author(s): Amolakrushi Maharaj
Publisher: Raja Bahaddurlal Sukhdevsahayji Jwalaprasadji Johari
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११-पंचांग विवाह पण्णचि (भगवती) मूत्र 4884
गोयमा ! वैयणिज आउयणामगुत्ताओ, चत्तारि कम्मपगडीओ वैदेइ ॥ २३ ॥ पुलाएणं भंते ! कइकम्मपगडीओ उदीरेइ ? गोयमा ! आउयवेयणिज्जवजाओ छकम्म पगडीओ उदीरेइ ॥ वउसेणं पुच्छा ? गोयमा ! सत्तविह उदीरएवा अट्ठविह उदीर• एवा छन्विह उदीरएवा; सत्तविह उदीरेमाणे आउयवज्जाओ सत्तकम्मपगडीओ उदीरेइ अट्टविह उदीरेमाणे पडिपुण्णाओ अट्टकम्मपगडीओ उदीरेइ ॥ छव्विह उदीरेमाणे आउयवेयणिजवजाओ छकम्मपगडीओ उदीरेइ ॥ पडिसेवणाकुसीले एवं चेव ॥ कसाय कुसीले पुच्छा, गोयमा ! सत्तविह उदीरए वा अट्टविह उदीरएवा, छविह नीय छोडकर सात कर्म प्रकृतियों वेदे. स्नातक की पूच्छा, अहो गौतम ! वेदनीय, आयुष्य नाम व गं. ये चार कर्म वेदे ॥ २३ ॥ अहो भगवन् ! पुलाक कितनी कर्म प्रकृतियों उदेरे ? अहो गौतम ! आयुष्य
और वेदनीय ये दो वर्जकर छकर्म प्रकृतियों उदेरे. बकुश की पृच्छा, अहो गौतम ! सात कर्म उदेरे, आठ कर्म उदेरे अथवा छ कर्म उदेरे. सात में आयुष्य कर्म, वर्जना, आठ प्रतिपूर्ण और छ में आयुष्य व वेदनीय दो कर्म वर्जना. मतिसेवना कुशील का वैसे ही कहना, कषाय कुशील की पृच्छा, अहो गौतम मात, आठ, छ अथवा पांच कर्म उदेरे. सात की उदीरणा में आयुष्य कसै वर्जना. छकी उदीरणा में
dagit पच्चीसवा शतक का छठा उद्देशा..428
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