Book Title: Agam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Sthanakvasi
Author(s): Amolakrushi Maharaj
Publisher: Raja Bahaddurlal Sukhdevsahayji Jwalaprasadji Johari
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14. कुलागस्सणं भंते ! केवइया संजमट्टाणा पण्णत्ता ? गोयमा ! असंखजा संजमाणा।
पण्णत्ता ॥ एवं आव कसायकुसलिस्स ॥ णियंठस्सणं भंते! केवइया संजमठाणा प..? गोयमा ! एगे अजहण्णमणुकोसए संजमट्ठाणे पण्णत्ते एवं सिणायस्सवि॥ एएसिणंभंते । पुलागवउस पडिसेवणा कसाय कुसीलेण णियंठ सिणायाणं संजमट्ठाणाणं कयरे कयरे जाव विसेसाहियावा ? गोयमा ! सम्वत्थोवे णियंठस्स, सिणायस्स एगे अजहण्णमणुक्कोसए संजमट्ठाणे, पुलागस्स संजमट्ठाणा असंखेजंगुणा,वउसस्स संजमट्ठाणा असंखेजगुणा,
पडिसेवणा कुसीलस्स संजमट्ठाणा असंखेज्जगुणा कसायकुसीलस्स संजमट्ठाणा
पुलाक के कितने संयम स्थान कहे हैं ? अहो गौतम ! असंख्यात संयम स्थान कहे हैं ऐसे ही कषाय भावार्थ
कुशील पर्यंत कहना. अहो भगवन् ! निग्रंथ के कितने संयम स्थान कहे हैं? अहोगौतम! अजघन्य अनुत्कर्ष एकसंयमस्थान कहा. यो स्नातक को भी कहना. अहो भगवन् ! इन पुलाक, बकुश, प्रतिसेवना कुशील, कषायकुशील, निग्रंथ वस्नातक में कौन किससे अल्प बहुत यावद विशेषाधिक हैं? अझे गौतम! सब से थोडे निर्धन्य वस्नातक का एक अजघन्य अनुकर्ष संयम स्थान, इस से पुलाक के संयम स्थान असंख्यात गुने, इस से कषाय
२ चारित्र की शुद्धि के प्रकर्ष अप्रकर्षकृत भेद सो संयम स्थानक वे प्रत्येक सर्व आकाश प्रदेश परिमाण पर्याय सहित होवे इस से पुलाक असंख्यात कहा.
48 अनुवादक-बालब्रह्मचारी मुनि श्री अमोलक अभिजी
* सबक राजाबहादुर लाला सुखैदेवसहायजी ज्वालाप्रसादजी *