Book Title: Agam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Sthanakvasi
Author(s): Amolakrushi Maharaj
Publisher: Raja Bahaddurlal Sukhdevsahayji Jwalaprasadji Johari
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तेरेसु उववज्जेज्जा, जोइसिय वेमाणिएसु उववजेजा ? गोथमा ! णो भवणासी णो वाणमंतर, णो जोइसिय, वेमाणिएसु उववजेज्जा ॥ वेमाणिएसु उवबजमाणे जहण्णेणं सोहम्मे कप्पे उक्कोसेणं सहस्सारे कप्पे उववज्जेज्जा ॥ वउसेण २८१७ एवंचव, णवरं उक्कोसेणं अच्चुए कप्पे ॥. पडिसेवणाकुसीले जहा वउसे ॥ कसाय कुसीले जहा पुलाए, णवरं उक्कोसणं अणुत्तर विमाणे नुय ॥ णियंठेणं भंते ! एवंचत्र जाव वेमाणिएसु उक्वजमाणे अजहण्णमणुकोसं अणुत्तर विमाणेसु उववजंजा ॥ सिणाएणं भंते ! कालगण् समाणं कं गतिं गच्छति ? गोयमा ! सिद्धगतिं गच्छति ॥ से ज्योतिषी ग वैमानिक में उत्पन्न होवे ? अहो गौतम ! भवनवासी, वाणव्यंतर व ज्योतिषी में उत्पन्न होवे । नहीं परंतु वैमानिक में उत्पन्न होवे. वैमानिक में उत्पन्न होता हुवा जघन्य सौधर्म उत्कृष्ट सहस्रार देवलोक में उत्पन्न होवे, बकुश का भी वैसे ही कहना परंतु अच्युत देवलोक तक में उत्पन्न होवे, प्रतिसेवना कुशील 0 का बकुश जैसे कहना, कषाय कुशील का पुलाक जैसे कहना परंतु उत्कृष्ट अनुत्तर विमान में भी उत्पमा
होवे, निग्रंथ का भी वैसे ही कहना परंतु यावत् वैमानिक में उत्पन्न होता हुवा अजघन्य, अनुत्कर्ष 1-अनुत्तर विमान में उत्पन्न होवे. अहो भगवन् : स्नातक में काल किया हुवा कौनसी गति में जाने ? अहो ।
पंचमांग विवाह पण्णति (भगवती) मंत्र +8+
48 पचीसना शतक का छठा उदेशा86
भाव
4.११