Book Title: Agam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Sthanakvasi
Author(s): Amolakrushi Maharaj
Publisher: Raja Bahaddurlal Sukhdevsahayji Jwalaprasadji Johari
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भावार्थ
- अनुवादक बालब्रह्मचारी मुनि श्री अमोलक ऋषिजी
पुलाएणं भंते! किं जिणकप्पे होजा थेरकप्पे होजा, कप्पातीते होजा ? गोयमा ! णो जिणकप्पे होजा, थेरकप्पे होजा, णो कप्पातीते होजा ॥ वउसणं भंते ! पुच्छा, गोयमा ! जिणकप्पे वा होजा, थेरकप्पे वा होज्जा, णो कप्पातीते होजा ॥ एवं पडि - सेवणा कुसीलेवि || कसाय कुसील पुच्छा, गोयमा ! जिणकप्पे वा होजा, थेरकप्पे वा होज्जा, कप्पातीते वा होजा ॥ नियंठणं पुच्छा ? गोयमा ! गो जिणकप्पे होजा, थेरकप्पे होज्जा, कप्पातीते होज्जा ॥ एवं सिगाएव ॥ ५ ॥ पुलाएणं
णो
स्नातक पर्यंत कहना. अहो भगवन् ! पुलाक क्या जिन कल्ली, स्थावर कल्पी या कल्पातीत होते ? अहो गौतम ! जिन कल्पी व कल्पानीत नहीं होते हैं परंतु स्थविर कल्पी होते हैं. बकुश की पृच्छा, अहो गौतम ! वकुश जिन कल्पी व स्थविर कल्पी डोवे परंतु कल्पातीत होवे नहीं ऐसे ही प्रतिसेवना कुशील का जानना. कषाय कुशील की पृच्छा, अहो गौतम ! जिन कल्पी होवे, स्थिविर कल्पी होवे अथव (कल्पातीत होवे. निर्ग्रन्थ की पृच्छा, जिन कल्पी व स्थविर कल्पी होवे नहीं परंतु कल्पातीत होवे ऐसे ही वाला दशों कल्पों में पूर्ण बंधा हुवा होवे नहीं. पहिले और छैले तीर्थकर को स्थित कल्प होता है, और शेष सब तीर्थकरा. को अस्थित कल्प होता है..
* प्रकाशक- राजाबहादुर लाला मुखदेवसहायजी ज्वालाप्रसादजी *
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