Book Title: Agam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Sthanakvasi
Author(s): Amolakrushi Maharaj
Publisher: Raja Bahaddurlal Sukhdevsahayji Jwalaprasadji Johari
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8. पंचमाङ्ग विवाह पण्णत्ति (भगवती) मूत्र -888
किं सरागे होजा, वीयरागे होज्जा ? गोयमा ! सरागे होज्जा जो वीयरागे होज्जा एवं जाव कसायकुसीले ॥ णियंठेणं भंते ! क सरागे होज्जा पुच्छा ? गोयमा ! णो सरागे होजा वीयरागे होज्जा ॥ जइ वीयरागे होजा कि उवसंत कसाय वीयरागेहोज्जा, खीणकसायवीयरागे होज्जा ? गोयमा ! उवसंतकसायवीयराग होजा, खीणकसायवीयरागे होजा ॥ सिणाते एवंचव णवरं णो उवसंतकसायवीयरागे होजा, खीणकसायवीयरागे होजा ॥ ४ ॥ पुलाएंणं भंते ! किं ट्रियकप्पे होजा, अट्रिय.
कप्पे होज्जा ? गोयमा ! ट्ठियकप्पे वा होज्जा अट्ठियकप्पे वा होजा॥ एवं जाव सिणाए । बीतराग है ? अहो गौतम ! सराग है परंतु वीतराग नहीं हैं. ऐसे ही कषाय कुशील पर्यंत कहना. अहो । भगवन् ! निर्ग्रन्थ क्या सरागी होवे पृच्छा, अहो गौतम ! निर्ग्रन्थ सरागी नहीं परंतु वीतगगी होवे. यदि वीतरागी हो तो क्या उपशांत कषाय वीतरागी होवे या क्षीण कपाय वीतरागी होरे ? अहो । गीतम! उपशांत कषाय वीतरागी व क्षीण कपाय वीतरागी हावे. ऐसे ही स्नातक का कह उपशांत कषाय वीतरागी होवे नहीं और क्षीण कषाय वीतरागी होवे. ॥ ४ ॥ कल्पद्वार अहो भगवन् ! पुलाक क्या स्थितकल्प या अस्थित होवे ? अहो गौतम ! स्थित कल्प व अस्थित कल्प दोनों होवे यों?
१ कल्प आचार को कहते हैं, स्थित कल्प वाला अचेलादि दशों कल्प में पूर्ण बन्धा हुवा होवे और अस्थित कल्प
पचीसवा शतक का छठा उद्दशा 4.१
भावार्थ