Book Title: Agam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Sthanakvasi
Author(s): Amolakrushi Maharaj
Publisher: Raja Bahaddurlal Sukhdevsahayji Jwalaprasadji Johari
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सूत्र
भावार्थ
488+ पंचमांगविवाह पण्णन्ति ( भगवती ) सूत्र 48+
'ज भणवासी देवर्हितो उववज्जति किं असुरकुमार भवणवासी देवहितो उववज्जति GIT थणि कुमार भणवासी ? गोयमा ! असुरकुमार भवणवासी जाव णियकुमार भवणवासी ॥ १४ ॥ असुरकुमारेण भंते! जे भविए पंचिदियतिरिक्ख जोणिएसु उववज्जित्तए सेणं भंते! केत्रइय ? गोयमा ! जहण्गेणं अंतोमुहुत्तट्ठिईएस उक्कोसेणं पुत्रकोडि ट्ठिएसु उववज्जेज्जा, असुरकुमाराणं लडी, णत्रसुत्रि गमए जहा पुढबीकाइए उबजमाणस्स एवं जाव ईमाणस्स देवस्स तहेव लडी ॥ भवादेसेणं सत् अभव गहणाई, उक्कोसेणं जहण्णेणं दोणि । द्वितिं संवेहंच जाणेजा।
पति वाणव्यंतर ज्योतिषी व वैमानिक देव में से उत्पन्न होते हैं. यदि भवनपति देव में से उत्पन्न होते हैं। तो क्या असुरकुमार में से यावत् स्तनितकुमार में से उत्पन्न होते हैं {वासी यावत् स्तनित कुमार भवनबासी में से उत्पन्न होते हैं ॥ १४
?
अहो गौतम ! असुरकुमार भवन
॥
अहो भगवन् ! जो असुरकुमार
तिर्यंच पंचेन्द्रिय में उत्पन्न होने योग्य होने वह कितनी स्थिति से उत्पन्न होवे ? अहो गौतम ! जघन्य अंतर्मुहूर्त उत्कृष्ट पूर्व क्रोड की स्थिति से उत्पन्न होते. असुरकुमार की लब्धि नहीं गया में जैसे पृथ्वीकायां असुरकुमार की उत्पत्ति ईशान पर्यंत की कही थी जैसे ही कहना. परंतु सब में भवादे
42 चोवीसत्रा शतक का बीसवा उद्देश! +
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