Book Title: Agam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Sthanakvasi
Author(s): Amolakrushi Maharaj
Publisher: Raja Bahaddurlal Sukhdevsahayji Jwalaprasadji Johari
View full book text
________________
aamannamrina
१ अनुवादक-बाल ब्रह्मचारी मुनि श्री अमोलक कमी 82
णत्यि जीवेणं भंते ! केवल गाणपजवेहि किं कडजुम्मे पुच्छा, गोयमा ! कडजुम्मे, जो तेओए, जोदावर णो कलिओए ॥ एवं मणुस्सेवि ॥ एवं सिद्धवि॥जीवाणं भंते ! केवलणाण पुच्छा, गोयमा ! ओघादेसेणवि विहाणा देसेण कडजम्मा णो तेओगा णो दावर जुम्मा णो कलि मोगा ॥ एवं मणुस्तावि ॥ जीवणं भंते ! मइअण्णाण पजवहिं कि कडजुम्मे जहा आभिणिवोहिय णाणपजवेहि, तहेव दो दंडगा ॥
सुअण्णाण पजवेहिंवि, एवं विभंगणाण पजवेहिंवि ॥ चक्खुदंसगअचक्खुइसण वैमानिक पर्यंत कहता. ऐसे ही श्रुन ज्ञान पर्यव का जानना. अवधिज्ञान पर्यव का भी ऐसे ही कहना पतु विकलेन्द्रिय को अपिज्ञान नहीं हैं. मनःपर्यव ज्ञान का भी ऐसे ही कहना परंतु मनः पर्यव ज्ञान मनुष्य व जीवों इन दोनों को कहना. अहो भगवन् ! जीव केवल ज्ञान से क्या कृतयुग्म है वगैरह पृच्छा अहो गौतप! कृतयुग्म है परंतु त्रेता, द्वापर व कलियुग्म नहीं है ऐसे ही मनुष्य व सिद्ध का जानना. अहो भगवन् ! बहुत जीवों की केवल ज्ञान पर्यव से पृच्छा, अहो गौतम ! सामान्य व भेद से कृतयुग्म हैं. परंतु ता, द्वापर व कलियुार नहीं हैं. एसे ही मनुष्य व सिद्ध का कहना. अहो भगवन् ! जीव क्या मति अज्ञान पर्यव से कृतयुग्म है ? अहो गौतम ! जैसे आभिनियोधिक ज्ञान के पर्यव कहे वैसे
.+काशक-राजाबहादुर लालामुखदवसहायजी ज्वाला मसादनी
भावार्थ