Book Title: Agam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Sthanakvasi
Author(s): Amolakrushi Maharaj
Publisher: Raja Bahaddurlal Sukhdevsahayji Jwalaprasadji Johari
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पाणवणवेयरागे कप्पचरित्त पडिसेवणा णाणे ॥ तित्थेलिंग सरीरे खिचे काले गति । संजमणिकासे ॥ १ ॥ जोगुवओग कसाए, लेसा परिणाम बंध वेदेय ॥ कम्मोदीरण उवसं, पजहण्ण सण्णाय आहारे ॥ २ ॥ भव आगरिसे कालं, तरेण समुग्घायखेत्त फुसणाय ॥ भावे परिमाणे खलु, अप्पाबहुयं णियंठाणं ॥ ३ ॥ रायगिहे जाव एवं वयासी-कइणं भंते! णियंठा पणत्ता ? गोयमा! पंच णियंठा पण्णत्ता, तंजहा-पुलाए, चउसे, कसीले, णियंठे, सिणाते, ॥१॥ पुलाएणं भंते ! कइविहे पण्णते ?
पंचामविवाह पण्णन्ति ( ममवती ) सूत्र
.. कासवा शतकका छठा उद्देशा
पांचवे उद्देशे के अंत में भाव के नाम कहे. उत्तम भाव निर्ग्रन्थ को होने हैं इसलिये निर्धन्य का प्रश्न करते हैं. इस के द्वार ३६ कहे हैं. १ प्ररूपणा द्वारे २ वेदद्वार ३ रागद्वार ४ कप द्वार ५ चारित्रद्वार ६ , प्रतिसेवना ७ ज्ञान ८ तीर्थ ९ लिंग १० शरीर ११ क्षेत्र १२ काल १३ गति १४ संयम १८ निकर्ष (पर्यव ) १६ योग १७ उपयोग १८ कषाय १९ लेश्या २० परिणाम २१ बंध २२ वेद २३ कर्मोदीरणा १२४ अंगीकार करना त्यागना २५ संज्ञा २६ आहार २७ भाव २८ आकर्ष.२०. काल ३० अंतर ३१ समुद्धात ३२ क्षेत्र ३३ वर्शना ३४ भाव ३५ परिमाण भौर ३६ अलका बहुत्वं. राजगृह नगर में यावत् । ऐसा बोले अहो भगवन् ! कितने प्रकार के निर्मन्य कहे हैं ? अहो गौतम ! पांच प्रकार के निर्ग्रन्थ करे हैं ।