Book Title: Agam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Sthanakvasi
Author(s): Amolakrushi Maharaj
Publisher: Raja Bahaddurlal Sukhdevsahayji Jwalaprasadji Johari
View full book text
________________
8th
|२७९९
पण्णत्ते ? गोयमा ! पंचविहे पण्णत्ते संजहा-णाणपडिसेवणा कुसीले, दमणपडिसेवणा कुसीले, चरित्तपडिसेवणा कुसीले, लिंगपडिसेवणा कुसीले, अहामुहुमपडिसेवणा
कुतीले णामपंचमे || कसाय कुसीलेणं भंते ! कइविहे पण्णत्ते ? गोयमा ! पंचविहे १ पण्णत्ते, तंजहाणाणकसाय कुसीले, दंसणकसाय कुसीले, चरित्तकसाय कुसीले, .
लिंगकसाय कुसील, अहा सुहमकसाय कुसीले, णामं पंचमे ॥ णियंठेणं भंते ! भावार्थ
वोच्छा करे. अहो भगवन् ! वकुश के कितने भेद कहे हैं. ? अहो गौतम ! वकुश के पांच भेद कहे हैं । जानकर दोष लगावे ? अजान में दोप लगाये ३ प्रगटदोष लगावे ४ गुप्त दोष और ५ शरीर की शुश्रूषा करे. अहो भगवन् ! कुशील के कितने भेद कहे हैं ? अहो गौतम ! कुशील के दो भेद कहे हैं १ प्रतिसेवना कुशील सम्यक्त विरोधक और २ कषाय कुशील कषाय से दोषित होवे. अहो भगवन! प्रतिसेवना कुशील के कितने भेद कहे हैं ? अहो गौतम ! पांच भेद हैं. १ ज्ञान प्रतिसेवना ज्ञान की सम्यक् प्रकार से आराधना करे नहीं २ दर्शन प्रतिसेवना दर्शन का विराधक होवे ३ चारित्र प्रतिसेवना चारित्रका विराधक होवे. ४ लिंग प्रतिसेवना लिंग का विराधक और ५ यथासूक्ष्म प्रतिसवना तपादि से नियाणा करे. अहो ola
भगवन् ! कषाय कुशोल के कितने भेद कहे हैं ? अहो गौतम ! कषाय कुशील के पांच भद कहे है | है, ज्ञान कषाय कुशील ज्ञान आश्री कपाय करें २ दर्शनं कषाय कुशील दर्शन आश्री कषाय करे ३१
in पंचमांग विवाह पण्णत्ति ( भगवती ) सूत्र
480 पच्चीसवा शतक का छठा उद्देशा 48.