Book Title: Agam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Sthanakvasi
Author(s): Amolakrushi Maharaj
Publisher: Raja Bahaddurlal Sukhdevsahayji Jwalaprasadji Johari
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भावार्थ
4 अनुवादक- अलब्रह्मचारी मुनि श्री अमोलक ऋषिजी -
कइविहे पण्णत्ते ? गोयमा ! पंचविहे पण्णत्ते, तंजहा- पढमसमयणियंठे, अपढमसमयणियंटे, रिमसमपणियंठे, अचरिमसमयणियंठे, अहासुहुमणियंठे णामं पंचमे ॥ सिनाए भंते ! कइविहे पण्णस्ते ? गोयमा ! पंचविहे पण्णत्ते, तंजहा - अच्छवी, असवले, अकम्मंसे, संसुद्धणाणदंसणधरेअरहाजिणे केवली. अपरिस्सावि ॥ २ ॥ पुलाएणं चारित्र कषाय कुशाल चारित्र आश्रो कषाय ४ लिंग कषाय कुशील लिंग आश्री कपाय करे ५ यथा सूक्ष्म कषाय कुशील मनादि से कषाय का सेवन करे. अहो भगवन् ! निर्ग्रन्थ के कितने भेद कहे हैं ? | अहो गौतम ! निर्ग्रन्थ के पांच भेद कहे हैं ? प्रथम समय का निर्ग्रन्थ सो उपशम मोहक व क्षीणमोहक का काल अंतर्मुहूर्त का है उस में को प्रथम समय में रहे २ अमयम समय का निर्ग्रन्थ प्रथम समय छोडकर अन्य समय में वर्ते ४ चरिम समय निग्रन्थ अंतिम समय में व ४ अचरिम समय निर्ग्रन्थ अंतिम समय बिना वर्ते और ५ यथासूद निर्ग्रन्थ सामान्यपना से वर्ते. अहो भगवन् ! स्नातक के कितने भेड़ कहे हैं ? { अहो गौतम ! स्नातक के पांच भेद कहे हैं ? अछवी छवि शरीर को कहते हैं इस से जिस को शरीर भोग का रंधन नहीं है मो २असवल काकर भाव रहित एकांत विशुद्ध चरणवंत अविचार कर्दम के अभाव से अखवल 3 अकम्मंसे घातिक कर्मों के अंश रहित ४ संशुद्ध सो विशुद्ध केवल ज्ञान (केवल दर्शन के धारक और ५ अपरित्र अबंधक निरुद्ध योग वाले || २ || अब बेद द्वार कहते हैं. अहां
*मका शंक- राजावहादुर लाला सुखदेवसहायजी जालाप्रसादजी
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