Book Title: Agam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Sthanakvasi
Author(s): Amolakrushi Maharaj
Publisher: Raja Bahaddurlal Sukhdevsahayji Jwalaprasadji Johari
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२७१८
श्री अमोलक ऋपिजी
भावार्थ
गोयमा ! पंचविहे पण्णत्ते, 'तंजहा - णाणपुलाए, दसणपुलाए, चरित्तपुलाए, लिंग पुलाए, अहासुहुम पुलाए णामं पंचमए ॥ वउसेणं भंते ! कइविहे पण्णत्ते? गोयमा! पंचविहे पण्णत्ते, तंजहा-आभोगवउसे, अणाभोगवउसे, संवुडवउसे, असंवुड़वउसे अहासहुमवउसे णामं पंचमे॥ कुसीलेणं भंते! कइविहे पण्णत्ते?गोयमा! दुविहे पण्णत्ते,
तंजहा-पडिसेवणा कुसीलय, कसायकुमीलेय ॥ पडिसेवणाकुसीलेणं भंते ! कइविहे जिनके नाम १. पुलाक २ बकुश ३ कुशील ४ निर्ग्रन्थ और ५ स्नातक * ॥ १॥ अहो भगवन् ! पुलाक के कितने भेद कहे हैं ? अहो गौतम ! पुलाक के पांच भेद कहे हैं जिनके नाम १. ज्ञान पुलाक-ज्ञान असार करे २ दर्शन पुलाक श्रद्धा असार करे ३ चारित्र पुलाक मूलगुन उत्तर गुन विराधे ४ लिंगपुलाग विना कारन लिंग परावर्तन करे और ५ यथासूक्ष्मपुलाक सो अकल्पनीय बस्तु की
* आभ्यंतर व बाह्य परिग्रह रूप ग्रन्थि से जो रहित हुवे हैं वे निन्थ साधु सर्वविरति होने पर भी है ३ विचित्र चारित्र मोहनीय कर्म के क्षयोपशम मात्र से भेद किये गये हैं. जैसे शालि केपुले में धान्य थोडा व घास विशेष होता है
है वैसे ही जिस में गुन थोडे व दोष बहुत होवे सो पलाक निर्गन्थ कहाते हैं. काबरे रंग के पदार्थ जसे बकुश, कुत्सित शील जिस को होने सो कुशील, मोहरूप गन्थि के भेद कमो निन्थ और कममल का धोने वाले स्नातक कहाते हैं.
मकाशक-राजाबहादुर लाला सुखदेवसहायनी चालाप्रसादनी *
अनुवादक-बालब
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