Book Title: Agam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Sthanakvasi
Author(s): Amolakrushi Maharaj
Publisher: Raja Bahaddurlal Sukhdevsahayji Jwalaprasadji Johari
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सूत्र
भावार्थ
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48 अनुवादक- बालब्रह्मचारी मुनि श्री अमोलक ऋषि
तंजहा सुमणिओदाय बादर णिओदाय ॥ एवं जिओदा भाणियन्त्रा, जहा जीवाभिगमे तव णिरवसेसं ॥ १० ॥ कइविणं भंते ! णामे पण्णत्ते ? गोयमा ! छवि णामे पण्णत्ते, तंजहा उदइए जाव सण्णिवाए ॥ सेकितं उदइएणामे ? उणा दुविहे पण्णत्ते, तंजहा उदइएय उदयणिष्फण्णेय, एवं जहा सतरसमसए पढमे उद्देस भावो तहेव इहवि णवरं इमं णाणत्तं सेसं तहेव जात्र सष्णिवाइए || सेवं भंते ! भंतेति ॥ पणवीसइमसयस्स पंचमो उद्देसो सम्मत्तो ॥ २५ ॥ ५ ॥ कितने भेद कहे हैं ? अहो गौतम ! निगोद के दो भेद कहे हैं ? सूक्ष्म निगोद व २ बादर निगोद इसका विशेष विस्तार जीवाभिगम मूत्र से जानना ॥ १० ॥ अहो भगवन् ! नाम ( परिणामं भाव ) के कितने भेद कहे हैं ? अहो गौतम ! छ प्रकार के नाम कहे हैं. जिनके नाम १ उदय २ उपशम ३ क्षयोपशम ४ ( क्षायिक २ पारिणामिक और ६ सन्निपतिक. अहो भगवन्! उदय नाम के कितने भेद कहे है? अहो गौतम! उदय नामके दो भेद कहे हैं ? औदयिक और २ उदय निष्पन्न ऐसे ही जैसे सत्तरहवे शतक के ( पहिले उद्देशे में कहा वैसे ही यहांपर भी कहना. परंतु इतना विशेष कि वहां भाव आश्री एक सूत्र कहा यहां नाम आश्री कहना यावत् सन्निपातिक नाम. अहो भगवन् ! आपके वचन सत्य हैं. यह पच्चीसवा शतक का पांचवा उद्देशा संपूर्ण हुवा. ॥ २५ ॥ ५ ॥
* प्रकाशक- राजाबहादुर लाला सुखदेवसहायजी ज्वालाप्रसादजी *
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