Book Title: Agam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Sthanakvasi
Author(s): Amolakrushi Maharaj
Publisher: Raja Bahaddurlal Sukhdevsahayji Jwalaprasadji Johari
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सूत्र
भावार्थ
48 अनुवादक - बालब्रह्मचारी मुनि श्री अमोलक ऋषिजी
जो कजम्मा, गोतओगा जो दावर, जो कलिओग॥ दुपदोसियाणं पुच्छा ? गोयमा ! ओघांदणं सिय कडजुम्मा, णो तेऔया सिय दावरजुम्मा, णो कलिओगा बिहा पामेण णो कडजुम्मा, णो तेओगा, दावरजुम्मा, जो कलिओगा तिपदेसियाणं पुच्छा गोयमा ! ओघादेसेणं सिय कडजुम्मा जात्र, सिय कलिओगा विहाणादेसेणं णो कडजुम्मा ते गाणो दावर णो कलिओगा । चउष्पदेसियाणं पुच्छा, गोयमा ! ओघादेवि विहाणादेसेणवि कडजुम्मा णो तेओगा जो दावर णो कलिओगा पंच एसिया जहा परमाणुपोग्गला ॥ छप्पदेसिया जहा दुपदेसिया | सत्तपएसिया {द्वापर व कलि योज इन में से कोई भी नहीं है. द्विनदेशिक की पृच्छा, अहो गौतम ! सामान्य से स्यात् । कृतयुग्म है व स्यात् द्वापर युग्म है परंतु प्रयोज व कलि योज नहीं है. विधाना देश से कृतयुग्म, ज्योज त्र कलि योज नहीं है परंतु द्वापर युग्म है. तीन प्रदेशिक स्कंध की पृच्छा, अहो गौतम ! सामान्य से स्यात् कृतयुग्म यावत् स्यात् कलि युग्म विधाना देश से कृतयुग्म, द्वापर युग्म व कलि योज नहीं परंतु प्रयोज है. चार प्रदेशी की पृच्छा, अहो गौतम ! सामान्य से व भेद से कृतयुग्म हैं परंतु ज्योज, द्वापर व कलि युग्म नहीं है. पांच मदेशिक स्कंध का परमाणु युद्ध जैसे कहना, छमदेशिक का द्विमदशिक जैसे, सात प्रदे
* प्रकाशक - राजाबहादुर लाला सुखदेवसहायजी ज्वालाप्रसादजी *
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