Book Title: Agam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Sthanakvasi
Author(s): Amolakrushi Maharaj
Publisher: Raja Bahaddurlal Sukhdevsahayji Jwalaprasadji Johari
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48 पंचांग विवाह पण्णत्ति (भगवती) सूत्र 480
कइविहाणं भंते ! पजश पण्णता ? गोयमा ! दुविहा पण्णत्ता तंजहा जीव पजवाय, अजीव पजवाय ॥ अजीवपदं गिरवसेसं भाणियन्वं ॥ १ ॥ आवलियाणं भंते ! किं संखेजा समया, असंखेज्जा समया, अणंता समया ? गोयमा ! णो संखेजा समया, असंखेजा समया, णोअणंता समया ॥ अणापाणणं भंते ! किं संखेजा ? एवं चेव ॥ थोवेणं भंते ! किं? एवं चेव ॥ एवं लवेवि ॥ मुहत्तेवि ॥ एवं अहोरत्ते ॥ एवं पक्खे, मासे, उऊ, अयणे, संवच्छरे, जुगे, वाससए, वाससहस्से, वाससयसहस्से, पुबिगे, पुब्वे,तुडियंगे,तुडिए,अडडंगे,अडडे,अववंगे,अववे,हुहुअंगे,हुहुए,उप्पलंगे,उप्पले,पउमंगे चतुर्थ उद्देशे में पुद्गलास्ति काया का स्वरूप कहा. पांचवे उद्देश में उस की पर्याय का स्वरूप कहते हैं. अहो भगवन् ! पर्यव के कितने भेद कहे हैं? अहो गौतम! दो प्रकार के पर्यत्र कहे तद्यथा?जीव पर्यव और १२ अजीव पर्यव. इस का सब कथन पनवणा के पांचवे पद से जानना. ॥ १ ॥ पर्याय का परिवर्तन काल से होता है इसलिये काल का प्रश्न करते हैं. अहो भगवन् ! आवलिका के क्या संख्यात समय हैं, असं-326 ख्यात समय हैं या अनंत समय हैं ? अहो गौतम ! संख्यात व अनंत समय नहीं हैं परंतु असंख्यात समय . भहो भगवन् ! श्वासोश्वास के क्या संख्यात समय वगैरह ऐसे ही जानना. ऐसे ही थोव, लब, मुहूर्त, है ।
488+ पच्चीसवा शतक का पांचवा उद्देशा 4882
भात
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