Book Title: Agam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Sthanakvasi
Author(s): Amolakrushi Maharaj
Publisher: Raja Bahaddurlal Sukhdevsahayji Jwalaprasadji Johari
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अमोलक ऋषिजी +
मझपदेसा पण्णता ? गोयमा ! अट्ट जीवत्यिकायस्स मज्झपदेसा पण्णत्ता ॥ एएसिणं भंते ! अट्ठजीवात्थकायस्स मज्झपदेसा कइसु आगासपदेसु ओगाढा होति ? गोयमा! जहण्णेणं एकसिवा, दोहिंवा, तिहिंवा, चउहिंवा, पंचहिंवा, छहिवा, उक्कोसेणं अट्ठसु। णो चेव सत्तसु ॥ सेवं भंते ! भंतेत्ति ॥ पणवीसइमसयस्स चउत्थो उद्देसो
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सम्मत्तो॥२५॥४॥.
HE हैं उस आश्री जानना. - अहो भगवन् अधर्मास्ति काया के कितने मध्य प्रदेश कहे हैं ? अहो गौतम !
पूर्वोक्त जैसे आठ मध्य प्रदेश कहे हैं. अहो भगवन् ! आकाशास्ति काया के कितने मध्य प्रदेश कहे हैं ? अहो गौतम ! आठ मध्य प्रदेश कहे हैं. अहो भगवन् ! यह आठ जीवास्ति काया के मध्य प्रदेश कितने आकाश प्रदेश अवगाहन कर रहे हैं ? अहो गौतम ! जघन्य एक, दो, तीन, चार पांच व छ उत्कृष्ट आठ; परंतु सात प्रदेश अगाहकर नहीं रहे हैं. अहो भगवन् ! आप के वचन सत्य हैं. यह पच्चीसवा शतक का चौथा उद्देशा संपूर्ण इवा. ॥ २५ ॥४॥
* यद्यपि लोक प्रमाण धर्मास्तिकाया का मध्य रत्नप्रभा के आकाशांतर में होता है किंतु रुचक में नहीं होता है ताहपि दिशा व विदिशा का उत्पन्न होना रुचक सेही होता है इसलिये धर्मास्तिकाया के मध्य की वहां विवक्षा की है.
प्रकाशक-राजावहादुर लाला मुख देवसहायजी ज्वालाप्रसादजी*
48 अनुवादक-बालब्रह्म