Book Title: Agam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Sthanakvasi
Author(s): Amolakrushi Maharaj
Publisher: Raja Bahaddurlal Sukhdevsahayji Jwalaprasadji Johari
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12 पोग्गला दबटुपदेसट्टयाए, संखेजगुण कक्खडा पोग्गला दबट्टयाए संखेज्जगुणा,
तेचे पदेसट्ठयाए संखेजगुणा, असंखेजगुण कक्खडा दवट्ठयाए असंखेजगुणा, तेचेव पदेसट्टयाए असंखेजगुणा, अणंतगुण कक्खडा दवट्ठयाए अणंतगुणा, तेचेव पदेसट्टयाए असंखजगुणा, ॥ एवं मउय गुरुय लहुयावि अप्पाबहुगं ॥ सीय उसिण गिद्ध लुक्खाणं जहा वण्णाणं नहेव ॥ २५ ॥ परमाणू पोग्गलेणं भंते ! दवट्टयाए
किं कडजुम्मे तेयोए दावरजुम्मे कलिओए ? गोयमा ! णो कडजुम्मे, णो तेयोए. शेष सब वैसे ही कहना. अब द्रव्य प्रदेश आश्री कहते हैं. द्रव्य से व प्रदेश से सब से थोडे एक गुण कर्कश पुद्गल, इस से संख्यात गुन कर्कश पुद्गल द्रव्य आश्री संख्यात गुने, इस से उस के ही पुद्गल प्रदेश आश्री संख्यात गुने, इस से असंख्यात गुण कर्कश पुद्गल द्रव्य आश्री असंख्यात गुने, इस मेवी प्रदेश आश्री असंख्यात गुने, इस से अनंत गुन कर्कश पुद्गल द्रव्य आश्री अनंत गुने, इस से वही प्रदेश आश्री असंख्यात गुने. ऐसे ही मृदु, गुरु व लघु की अल्पाबहुत कहना. शीत, ऊष्ण, स्निग्य व रूस की वर्ण) जैसे कहना. ॥ २५ ॥ अहो भगवन् ! परमाणु पुद्गल द्रव्याथिक नय से क्या कृत युग्म है, योग है. द्वापर है या कल्पोज है? अहो गौवम ! कृत युग्म, योज व द्वापर युग्म नहीं है परंतु कलियोन है. ऐसे ही
विवाह पण्णत्ति ( भगशी) सूत्र *
भावार्थ
पच्चीसवा शतक का चौथा पदेशा 43
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