Book Title: Agam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Sthanakvasi
Author(s): Amolakrushi Maharaj
Publisher: Raja Bahaddurlal Sukhdevsahayji Jwalaprasadji Johari
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14. वाणगंधरसाण ॥ एएसिणं भंते ! एगगुण कक्खडाणं संखेजगुणकक्खडाणं असंखेज.
गुण कक्खडाणं अगंतगुण कक्खडाणय पोग्गलाणय दन्वट्ठयाए पदेसट्टयाए दवट्ठपएसट्टयाए कयरे २ जाव विसेसाहियावा ? गोयमा ! सम्वत्योवा एगुणकक्खडा पोग्गला दबटुयाए. संखजगुण कक्खडा पोग्गला दवट्ठयाए संखजगुणा असंखेजगुण काखडा पोग्गला दबठाए असंखेजगुणा, अणतगुण कक्खडा पोग्गला दव्वट्ठयाए अर्णतगुणा, पदेसट्टयाए एवं गवरं संखजगुणकाखडा पोग्गला
पदेसट्टयाए असंखेजगुणा सेसं तं दबटुपएदेसट्टयाए सब्वत्थोवा एगगुणकक्खडा Eकी अरपाबहुत्व कही से ही इस की अलाबहुत्व कहना. और ऐसे ही शेष सवर्ण, गंध व रमकी
अल्पाबहुत्व कहना. अहो भगवन् ! एक गुण कर्कश, संख्यात गुण कर्कश, असंख्यात गुण कर्कश व अनंतगुण कर्कश में द्रव्य मे प्रदेश से व द्रव्य प्रदेश से कौन अल बहुत यावत् विशेषाधिक है ? महो गौतम ! ट्रम्य से सर से थोडे एक गुण कर्कश पुगक इस से संख्यात गुन कर्कश पुद्गल संख्यानगुने, इस से असंख्यात गुण कर्कश पुगल असंख्यात गुने, इस से अनंत गुण कर्कश पुद्गल अनंत गुने. प्रदेश माश्री से से कहना. परंतु संख्यात मुण कर्कश पुनस प्रेदश पात्री बसंख्यात गुने ।।
4. अनुवादक-चालनमचारी मुनि श्री अमोलक ऋषिजी +
कामकाजाबहादुर लाला सुखद सहायनी मालाममादजी।