Book Title: Agam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Sthanakvasi
Author(s): Amolakrushi Maharaj
Publisher: Raja Bahaddurlal Sukhdevsahayji Jwalaprasadji Johari
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सूत्र
भावार्थ
+8+ पंचमांग विवाद पण्णति ( भगवती ) मूत्र 438+
भाणियन्त्रो || एंगतपुहत्तेणं एवं जाव लुक्खफासपज्जवेहिं ॥ १२ ॥ जीवेण भंते ! आभिणिबोहियणाणपज्जवह किं कडजुम्मे पुच्छा ? गोयमा ! सिय कडजुम्मे जाव सिय कलिओगे ॥ एवं एर्गिदियवज्जं जाव वैमाणिए || जीवाणं भंते ! आभिणिबोहिय णाणपत्रेर्हि पुच्छा ? गोयमा ! ओघादेसेणं सिय कडजुम्मा जाव सिय कलिओगा, विहाणादेसेणं कडजुम्भावि जाव कलिओगावि, एवं एगिंदियवज्र्ज, जाव वैमाणिया ॥ एवं सुयणाणपज्जहिं ॥ ओहिणाण पज्जवेर्हिवि एवं चैव वरं विगलिंदियाणं णत्थि ओहिणाणं, मणपजवणात्रि एवं चैव वरं जीवाणं मणुस्सालय, सेसाणं
युग्म है. ऐसे ही वैमानिक पर्यंत (दंडक कहना.
कहना. ऐसे ही नीला वर्ण का भी एक अनेक आश्री रूक्ष स्पर्श पर्यंत एक अनेक का दंडक कहना ॥ १२ ॥ जीव क्या कृतयुग्म है पृच्छा, अहो गौतम : स्यात् कृतयुग्म
अहो भगवन् ! आभिनिवोधिक ज्ञान से
यावत् स्यात् कलियुग्म ऐसे ही एकेन्द्रिय वर्जकर वैमानिक पर्यंत कहना. क्यों की एकेन्द्रिय में ज्ञान नहीं हैं. अहो भगवन् ! बहुत जीवों आभिनिबोधिक ज्ञान से पृच्छा, अहो गौतम ! सामान्य से स्यात कृतयुग्म यावंत स्यात् कलियुग्म भेद से कृतयुग्म भी और कलियुग्म भी हैं. ऐसे ही एकेन्द्रिय वकर
** पचीसत्रा शतक का चौथा उद्देश। ९०
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