Book Title: Agam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Sthanakvasi
Author(s): Amolakrushi Maharaj
Publisher: Raja Bahaddurlal Sukhdevsahayji Jwalaprasadji Johari
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सूत्र
भावार्थ ।
4 पंचमांग विवाह पष्णत्ति ( भगवती ) सूत्र 43
यि कडजुम्मसमयद्वितीए जाब सिय कलिओगसमयद्वितीए, एवं जाव वैमाणिए, सिद्धे जहा जीवे ॥ जीवाणं भंते ! मुच्छा, गोयमा ! ओघादेसेणवि विहाणादेसेण वि कडजुम्मसमयद्वितीया, णो तेओगा, जो दात्ररजुम्मसमयद्वितीया, णो कलिओगा ॥ रइयाणं पुच्छा, गोयमा ! ओवादेसेगं सिय कडजुम्न समय द्वितीयावि जाब सिय कलिओग समय द्वितीयात्रि || विहाणादेसेणं कडजुम्म समय द्वितीयावि, जात्र कलिओग समय द्वितीयावि ॥ एवं जात्र वैमाणिया || सिद्धा जहा जीवा ॥ ११ ॥
अनंत समयात्मक होने से. नारकी की पृच्छा, अहो गौतम ! नारकी स्यात् कृतयुग की स्थितिवाला यावत् स्यात् कलि युग्म की स्थितिवाला है एसे ही वैमानिक पर्यंत करना सिद्ध का ममचय जीव जैसे कहना. अबबहुत जीवों क्या कृतयुग्न समय की स्थितिवाले हैं यावत् कलियुग्म समयकी स्थितिवाले हैं? अहो गौतम ! बहुत जीवों सामान्य व भेद से कृतयुग्म समय की स्थितिवाले हैं. परंतु त्रेता, द्वापर देव कलियुग्म समयकी स्थितिवाले नहीं हैं. नारकीकी पृच्छा, अहो गोतम ! सामान्य से स्यात् कृतयुग्म समय की स्थितिवाले यावत् स्यात् कलि युग्न समयकी स्थितिवाले हैं भेद से कृतयुग्न समयकी स्थितिवाले स्यात् कलि युग्म समय की स्थितिवाले भी हैं. ऐसे ही वैमानिक पर्यंत कहना सिद्ध कॉ समुच्चय जीव
ॐ पश्चीमत्रा शतक का चोथा उदशा ++--
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