Book Title: Agam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Sthanakvasi
Author(s): Amolakrushi Maharaj
Publisher: Raja Bahaddurlal Sukhdevsahayji Jwalaprasadji Johari
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६३ अनुवादक बालब्रह्मचारी मुनि श्री अमोलक ऋषिजी
पुच्छा ? गोयमा ! ओघादेसेणं कडजुम्म पदेसोगाढा णो तेओगा जो दावर णो . कलिओगा || विहाणादेसेणं कडजुम्म पदेसोगाढाचि जात्र कलिओग पदेसोगाढा ॥ रइयाणं भंते! पुच्छा ? गोयमा ! ओघादेलेणं सिय कडजुम्मन देसांगाढावि जाव सिय कलिओगपदेसोगाढावि ॥ विहाणांदेसेणं कडजुम्मपदेसोगाढात्रि जाब सिय कलिआंग देसी गाढाव ॥ एवं एगिंदिय वज्जा जाव वैमाणिया, सिद्धा एगिंदियाय जहा जीवा ॥ १० ॥ जीवेणं भंते! किं कडजुम्मसमयद्वितीए पुच्छा ? गोयमा ! कडजुम्म समयद्वितीए जो तेओगे णो दावर णो कलिओग समयद्वितीए ॥ रइएणं पुच्छा ? गायमा ! प्रदेशावगाही नहीं है. और भेद से कृपयग्न प्रदेशावगाही यात्रत् कलि युग्म प्रदेशावगाडी है. अहो भगवन् नारकी की पृच्छा, अहो गौतम ! सामान्य से स्यात् कृतयुग्म प्रदेशावंग ही यावत् स्यात् कलि युग्न प्रदे( शावगाही है. और भेद से कृतयुग्म प्रदेशावगाही यावत् कलि युग्म प्रदेशावगाही है. एने ही एकेन्द्रिय 'वर्ज कर वैमानिक पर्यंत कहना. व मिद्ध एकेन्द्रिय का जीव जैसे कहना ॥ १० ॥ अहो भगवन् ! जीव क्या कृतयुग्म समय की स्थितिवाला है वगैरह पृच्छा, अहो गौतम ! जीव कृतयुग्म समय की स्थितिवाला {है परंतु शेष तीनों युग्म के समय की स्थितिवाला नहीं हैं. जीव तीनों काल में शाश्वत होता है इस
* प्रकाशक- राजाबहादुर लाला सुखदेन महायजी ज्वालाप्रसादजी
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