Book Title: Agam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Sthanakvasi
Author(s): Amolakrushi Maharaj
Publisher: Raja Bahaddurlal Sukhdevsahayji Jwalaprasadji Johari
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पण्णत्ति ( भगवतीः) मूत्र Nigita
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...जीवपदेसे षडुच्च ओघादेसेणवि विहाणादेसेणवि कडजुम्मा, णो तेओगा णो दावर
जम्मा, णो कलिओगः ॥ सरीरपदेसं पडुच्च ओघादेसेणं सिय कडजम्मा जाव सिय कलिओगा ॥ विहाणादेसेणं कडजुम्मावि जाव कलिओगावि ॥ एवं णेरइयावि ॥ एवं जाव वेमाणिया ॥ सिद्धाणं भंते ! पुच्छा, गोयमा ! ओघादसेणवि विहाणादेसेणवि कडजुम्मा णो तेओगा णो दावरजुम्मा णो कलिओगा ॥ ९॥ जीवेणं भंते ! किं कडजुम्मपदेसोगाढे पुच्छा ? गोयमा। सिय कडजुम्म १देसोगाढे जाव सिय
कलिओगपदेसोगाढे ॥ एवं जाव सिद्धे ॥ जीवाणं भंते ! किं कडजुम्म पदेसोगाढा द्वापर त्रेता व कलि युग्म नहीं हैं. शरीर प्रदेश आश्री सामान्य से स्यात् कृतयुग्म यावत् स्यात् कलियुग्म है ॥ ९ ॥ विधानादेश से कृतयुग्म यावत् कलि युग्म है. ऐसे ही नारकी यावत् वैमानिक पर्यंत जानना. सिद्ध की पृच्छा, अहो गौतम ! सामान्य व भेद से कृतयुग्म है परंतु त्रेता, द्वापर व कलि युग्म नहीं हैं. अहो भगवन् ! जीव क्या कृतयुग्म प्रदेशावगाहा है ? अहो गौतम ! स्यात् कृतयुग्म प्रदेशावगाही स्यात् कलि युग्म प्रदेशावगाही ऐसे ही सिद्ध पर्यंत कहना. अहो भगवन् ! बहुत जीव क्या कृतयुग्म प्रदेशावगाही पृच्छा, अहो गौतम - सामान्य से कृतयुग्म प्रदेशावगाही परंतु त्रेता, द्वापर व कलि युग्म
वाथे
पचीसमा शतक का चौथा उद्देशा शा
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