Book Title: Agam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Sthanakvasi
Author(s): Amolakrushi Maharaj
Publisher: Raja Bahaddurlal Sukhdevsahayji Jwalaprasadji Johari
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चैव ॥७॥ इमीसेणं भंते ! रयणप्पभा पुढवी किं ओगाढा अगोगाढा जहेब धम्मस्थिकाए एवं जाव अहे सत्तमा ॥ सोहम्मे एवंच ॥ एवं जाव ईतिप्पभारा पुढवी ॥ ८॥ जीवेणं भंते ! दबट्टयाए किं कडजुम्मे पुच्छा ? गे.यमा ! णो कडजुम्मे, णो
२७३९ तेयोगे, णो दावरजुम्मे, कलियोग ॥ एवं गैरइएवि ॥ एवं जाव सिद्धे ॥ जीवाणं भंते ! दवट्टयाए किं कडजम्मा ? गोयमा ! ओघ देखणं कउजम्मा णो तेयोगा णो दावर जो कलिओगा ॥ निहाण,देसेणं णा कडजुम्मा णो तेओगा णो दावरजुम्मा
कलियोगा. जेरइयाणं भंते ! दबट्टयाए पुच्छा, गोयमा ओघादेसेणं सिय कड. भावार्थ है अहो भगवन् इम रत्नप्रभा पृथी क्या अवगाहकर रही है या विना अवगाहकर रही है? अहो गौतम! जैसे धर्मास्तिLE काया का कहा वैसे ही कहता. यो मातवी नमनमा पृथ्वी तक कहना. ऐने ही सौधर्म पावत् ईषत्माग्भार पृथ्वी पर्यंत ।
कहना ॥ ८॥ अहो भगवन् ! द्रव्य स जीव क्या कृतयुग्म हैं वगैरह पृच्छा, अहो गौतम ! जीव द्रव्य से.
कृतयुग्म, प्रेता, व द्वापर युग्म नहीं है परंतु कलि युग्म है. ऐसे ही नारकी यावत् सिद्ध पर्यंत कहना. अहो. | भगवन् ! बहुन जीव क्या द्रव्य से कृतयुग्म हैं ? वगैरह पृच्छा, अहो गौतम ! जीव सामन्य से कृत।
युग्म है परंतु त्रेता, द्वापर व कलि युग्म नहीं हैं. और भेद से कृतयुग्म, त्रेता व द्वापरं युग्मं नहीं हैं परंतु ।
१. पंचाम विवाह गति (भगवती) मूत्र 48
18+ पञ्चीसवा शतक का चौया उद्देशा