Book Title: Agam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Sthanakvasi
Author(s): Amolakrushi Maharaj
Publisher: Raja Bahaddurlal Sukhdevsahayji Jwalaprasadji Johari
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पंचमांग विवाह पण्णत्ति ( भगवती) सूत्र
ओहिंदसणपजवेहिं एवं चेव णवरं जस्स जं अत्थि तस्स सं भाणियव्वं केवलदसण पजवहिं जहा केवल गाण पजहि ॥ १३ ॥ कइणं भंते ! सररिंगा पणत्ता ? गोयमा ! पंच सरीरगा पण्णता, तंजहा ओरालिय जाव कम्मए एत्थं सरीरपदं णिवरसेसं भाणियन्वं जहापण्णवणाए ॥ १४ ॥ जीवाणं भंते ! कि सेया गिरेया ? । गोयमा ! जीमा सेयावि णिरेयावि ॥ से केणटेणं भंते ! एवं वुच्चइ जीवा सेयावि णिस्यावि ? गोयमा ! जीवा दुविहा पण्णत्ता, तंजहा संसार समावण्णगाय, असं.. ही दो दंडक कहना. ऐसे ही श्रुत अज्ञान के पर्यत्र, विभंगज्ञान के पर्यव, चक्षु दर्शन, अचक्षु दर्शन अवधिदर्शन के पर्यव का भी वैमे ही कहना. परंतु विशेषता यही कि जिन जितने जो ज्ञान होवे वही लेना.. केवल दर्शन का केवल ज्ञान जैसे लेना. ॥ १३ ॥ अहो भगवन् ! शरीर कितने कह हैं ? अहो गौतम ! शरीर पांच कहे हैं उन के नाम.-उदारिक यावत् कार्माण. यहांपर पन्नाणापद का पारवा शरीर पद विशेषता रहित जानना. ॥ १३ ॥ अहो भगवन् ! जीव क्या कंपन स्वभाव वाले हैं या स्थिर हैं? अहो ! गौतम जीव कंपन स्वभाव वाले भी हैं और स्थिर स्वभाव वाले भी हैं. अहो भगवन् ! किस कारन से एमा कहा गया यावत् जीव कंपन स्वभाव पाले व स्थिर स्वभाव वाले हैं ? अहो गौतम जीव के दो भेद ।
पच्चीसंवा शतकका चौथा उद्देशा 420
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