Book Title: Agam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Sthanakvasi
Author(s): Amolakrushi Maharaj
Publisher: Raja Bahaddurlal Sukhdevsahayji Jwalaprasadji Johari
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. स्वधेहितो अणंतपदेसिन खंधा दट्टयाए हुया । एएसिणं भंते । परमाणुपोग्गलाचे
दुपदे सियाणय खधाणं पदमट्टयाए कपरे २ हितो बहुगा ? गोयमा ! परमाणुपोग्गलेहिंतो दुपदमिया खंधा पदसट्टयाए बहुया ॥ एवं एएणं गमएणं जाव पर पएसिए, हिंता वधहिती दमपनिया खधा पदेसटुयाए बहुधा ॥ एवं सम्वत्थ पुग्छिपवं ।।
दमपरासएहितो खंधहितो संखजपएसिया खंया पदसट्टयाए बहुया, संखेन पएसिए. है हिंतो खधहितो असंखेज परमिया खंधा पदसट्टयाए बहुया ॥ एएसिणं भंते ! असं
खेज पएसियाणं पुच्छा ? गोयमा! अगंतपएसिएहिंतो खंधेहिंतो असंखेजपएसिया
खंधा पदसट्टयाए बहुया ॥ १७ ॥ एएसिण भंते ! एगपदसोगाढाणं दुपदेसोगाढा बहन हैं और असंख्यात प्रदशिक स्कंध में मत प्रदशिक स्कंध द्रव्य से बहुत हैं. अहो भगवन् ! इन परपाणु पुट्ठल व द्विपदशिक स्कंध में प्रदेश से कौन किस से अल्प बहुत है ? अहो गौतम ! परमानु पुल से दिग्दशिक स्कंध प्रदश्च मे बहुत है यो इस क्रम मे नव पदेशिक स्कंध से दश भदेशिक स्कंध प्रदेश से बहुत:, यो दश प्रदशिक मंत्र में संख्यात प्रदेषिक संघ प्रदेश में गहन .मख्यात प्रदेशिकरकंच से असं ख्यात प्रदेशिक संघ प्रदेश में बहुत हैं. अहा भगवन् ! संख्यान प्रदेशिक व अनंत प्रदेशिक स्कंध में कौन अल्प बहुत है ? अहो गौतम ! अनंत प्रदेशिक स्कंध से असंख्यात मदेशिक स्कंध त । ॥१०॥
पाराबाबहादरलालामुख
पर अनुवादक-पालनमचारी मुनि श्री अमोलक ऋपिजी
भावार्थ
पुखदेवसहावी
बीपालाप्रसा