Book Title: Agam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Sthanakvasi
Author(s): Amolakrushi Maharaj
Publisher: Raja Bahaddurlal Sukhdevsahayji Jwalaprasadji Johari
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भावार्थ
43 अनुवादक - बालब्रह्मचारी मुनि श्री अमोलक ऋषिणी +
जुम्मा जान सिप कलियांगा विहाणावेसेणं णो कडजुम्मा णो तेओगा णो दावरजुम्मा कलियोगा एवं जाव सिद्धा । जीवेणं भंते! पदेसट्टयाए कि कडजुम्मा पुच्छा ? गोयमा ! जीवपदे से पडुश्च कडजुम्मे णो तेओगे, णो दावरजुम्मे णो कलिओगे सरीरपदेसे पहुच सिय कडजुम्मा, जात्र सिय कलिआंगे ॥ एवं जाव चेमाणिए ॥ सिद्धेणं भंते! पदेसट्टयाए कि कडजुम्मे पुच्छा ? गोयमा ! कडजुम्मे णो तेओगे, णो दावरजुम्मे णो कलिओगे||जीवाणं भंते ! पदेसट्टयाए किं कडजुम्मा पुच्छा ? गोयना !
हैं.
कलि युग्म है. अहो भगवन् ! द्रव्य से नारकी की पृच्छा अहां गोतम ! सामान्य मे नारकी स्याव कृतयुग्म यावत् स्यात् कलि युग्म हैं. विधानादेश से कृतयुग्म, त्रेता व द्वापर नहीं परंतु कलि युग्म ऐसे ही मिद्ध पर्यंत कहना. अहो भगवन् ! प्रदेश से जीव क्या कृतयुग्म हैं वगैरह पृच्छा, अहो गौतम !! जीव प्रदेश आश्री कृतयुग्म है परंतु त्रेता, द्वापर व कलि युग्म नहीं है. शरीर प्रदेश आश्री स्यात् कृत{ युग्म यावत् स्यात् कलि युग्म है. ऐसे ही वैमानिक पर्यंत कहना. सिद्ध प्रदेश से क्या कृतयुग्म अहो गौतम ! कृतयुग्म है परंतु त्रेता, द्वापर व कलि युग्म नहीं हैं. अहो भगवन् ! बहुत जीव प्रदेश से क्या कृतयुग्म है वगैरह पृच्छा, अहां गौतम ! बहुत जीव प्रदेश आश्री सामान्य से व भेद से कृतयुग्म है परंतु
है पृच्छा,
प्रकाशक- राजाबहादुर लाला मुखदेवसहायजी ज्वालाप्रसादजी *
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